Coronavirus vaccine: कोरोना वैक्सीन कब तक आम लोगों को मिल पाएगी? जानें भारत समेत दुनियाभर के टीकों के ताजा अपडेट्स

कोरोना वायरस की चपेट में दुनिया को आए आठ महीने हो चुके हैं और इस बीमारी की चपेट में अब तक दो करोड़ 17 लाख लोग आ चुके हैं। सात लाख 75 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इन सबके बीच इस वायरस के खिलाफ सबसे बड़ी कामयाबी का एलान 11 अगस्त, 2020 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने किया था। पुतिन ने दावा किया है कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की ऐसी वैक्सीन तैयार कर ली है जो कोरोना वायरस के खिलाफ कारगर है। पुतिन ने कहा कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया और ये सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है। इस वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मंजूरी दे दी है।
रूस का पहली वैक्सीन बनाने का दावा

गमलेया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को भी यह टीका लगा है। इस वैक्सीन को गमलेया इंस्टीट्यूट के साथ रूसी रक्षा मंत्रालय ने विकसित किया है। माना जा रहा है कि रूस में अब बड़े पैमाने पर लोगों को यह वैक्सीन देनी की शुरुआत होगी। रूसी मीडिया के मुताबिक, 2021 में जनवरी महीने से पहले दूसरे देशों के लिए ये उपलब्ध हो सकेगी।

समाचार एजेंसी रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस में सितंबर से इस वैक्सीन स्पुतनिक v का औद्यौगिक उत्पादन शुरू किया जाएगा। इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनियाभर के 20 देशों से इस वैक्सीन के एक अरब से ज्यादा डोज के लिए अनुरोध रूस को मिल चुका है। रूस हर साल 50 करोड़ डोज बनाने की तैयारियों में जुटा है।

हालांकि रूस ने जिस तेजी से कोरोना वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है, उसको देखते हुए वैज्ञानिक जगत में इसको लेकर चिंताएं भी जताई जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक अब खुल कर इस बारे में कह रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि उसके पास अभी तक रूस के जरिए विकसित किए जा रहे कोरोना वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है कि वो इसका मूल्यांकन करें। पिछले हफ्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रूस से आग्रह किया था कि वो कोरोना के खिलाफ वैक्सीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन का पालन करे।
रूस के दावे पर शंका

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत जिन छह वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है, उनमें रूस की वैक्सीन का जिक्र नहीं है। विश्व के दूसरे देश इसलिए भी रूस की वैक्सीन को लेकर थोड़े आशंकित हैं। दरअसल जिस कोरोना वैक्सीन को बना लेने का दावा रूस कर रहा है, उसके पहले फेज का ट्रायल इसी साल जून में शुरू हुआ था। रूस में विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान के सेफ्टी डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। इस वजह से दूसरे देशों के वैज्ञानिक ये स्टडी नहीं कर पाए हैं कि रूस का दावा कितना सही है।

रूस ने कोरोना के अपने टीके को लेकर उठी अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को खारिज करते हुए इसे 'बिल्कुल बेबुनियाद' बताया है। जानकारों ने रूस के इतनी तेजी से टीका बना लेने के दावे पर संदेह जताया। जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और अमेरिका में वैज्ञानिकों ने इसे लेकर सतर्क रहने के लिए कहा। इसके बाद रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने रूसी समाचार एजेंसी इंटरफैक्स से कहा, 'ऐसा लगता है जैसे हमारे विदेशी साथियों को रूसी दवा के प्रतियोगिता में आगे रहने के फायदे का अंदाजा हो गया है और वो ऐसी बातें कर रहे हैं जो कि बिल्कुल ही बेबुनियाद हैं।'

अमेरिका में देश के सबसे बड़े वायरस वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फाउची ने भी रूसी दावे पर शक जताया है। डॉक्टर फाउची ने नेशनल जियोग्राफिक से कहा, 'मैं उम्मीद करता हूं कि रूसी लोगों ने निश्चित तौर पर परखा है कि ये टीका सुरक्षित और असरकारी है। मुझे पूरा संदेह है कि उन्होंने ये किया है।'

रूस की इस वैक्सीन से इतर इस समय कोरोना महामारी के खिलाफ दुनियाभर में वैक्सीन विकसित की लगभग 23 परियोजनाओं पर काम चल रहा है, लेकिन इनमें से कुछ ही ट्रायल के तीसरे और अंतिम चरण में पहुंच पाई हैं और अभी तक किसी भी वैक्सीन के पूरी तरह से सफल होने का इंतजार ही किया जा रहा है। इनमें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, मॉडर्ना फार्मास्युटिकल्स, चीनी दवा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक के वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स अहम हैं।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन प्रोजेक्ट ChAdOx1 में स्वीडन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका भी शामिल है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोविड वैक्सीन के ट्रायल का काम दुनिया के अलग-अलग देशों में चल रहा है। मई के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन ने ऑक्सफोर्ड के प्रोजेक्ट को सबसे एडवांस कोविड वैक्सीन कहा था। इंग्लैंड में अप्रैल के दौरान इस वैक्सीन प्रोजेक्ट के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल का काम एक साथ पूरा किया गया।

18 से 55 साल के एक हजार से ज्यादा वॉलिंटियर्स पर किए गए ट्रायल में वैक्सीन की सुरक्षा और लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का जायजा लिया गया था। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ये वैक्सीन प्रोजेक्ट अब ट्रायल और डेवलपमेंट के तीसरे और अंतिम चरण में है। ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के ट्रायल के इस चरण में करीब 50 हजार वॉलिंटियर्स के शामिल होने की संभावना है। दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राजील जैसे देश ट्रायल के अंतिम चरण में भाग ले रहे हैं।

भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के भारत में इंसानों पर परीक्षण की तैयारी में है। अगर अंतिम चरण के नतीजे भी सकारात्मक रहे, तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम साल के आखिर तक ब्रिटेन की नियामक संस्था 'मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी' (एमएचआरए) के पास रजिस्ट्रेशन के लिए साल के आखिर तक आवेदन करेगी। 
अमेरिका की मॉडर्ना कोविड वैक्सीन

बीते 15 जुलाई को अमेरिका में टेस्ट की जा रही कोविड-19 वैक्सीन से लोगों के इम्युन को वैसा ही फायदा पहुंचा है जैसा कि वैज्ञानिकों को उम्मीद थी। हालांकि अभी इस वैक्सीन का अहम ट्रायल होना बाकी है। अमेरिका के शीर्ष विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची ने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस से कहा, 'आप इसे कितना भी काट-छांट कर देखो तब भी ये एक अच्छी खबर है।' माना जा रहा है कि मॉडर्ना वैक्सीन प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण के शुरुआती हिस्से में है। मॉडर्ना ट्रायल के इस चरण में 30 हजार लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण करेगी। 

विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर किसी नए प्रोडक्ट का परीक्षण तभी किया जाता है, जब वो नियामक एजेंसियों के पास मंजूरी के लिए दाखिल किए जाने के आखिरी दौर में हो। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कोरोना वायरस के लिए इसे अब तक की सबसे तेज वैक्सीन प्रोजेक्ट करार दिया है। मॉडर्ना के क्लीनिकल ट्रायल में अमेरिका का नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) भी शामिल है। एनआईएच के निदेशक फ्रांसिस कोलिंस का कहना है कि साल 2020 के आखिर तक कोरोना की वैक्सीन बना लेने का लक्ष्य रखा गया है।
मॉडर्ना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीफन बांसेल ने बताया, 'मुझे उम्मीद है कि मॉडर्ना की वैक्सीन अमेरिकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के मापदंडों पर 75 फीसदी तक खरी उतरेगी। हमें उम्मीद है कि ट्रायल में हमारी वैक्सीन कोरोना को रोकने में कामयाब होगी और हम इससे महामारी को खत्म कर पाएंगे।'

नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ और मॉडर्ना इंक में डॉ. फाउची के सहकर्मियों ने इस वैक्सीन को विकसित किया है। 27 जुलाई से इस वैक्सीन का सबसे अहम पड़ाव शुरू हो चुका है। तीस हजार लोगों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है और पता किया जाएगा कि क्या ये वैक्सीन वाकई कोविड-19 से मानव शरीर को बचा सकती है।


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