चार दिन पहले युवतियों के साथ भागे थे, फिर परिजनों ने बुलाया लौटकर
मिली जानकारी के अनुसार दोनों युवक बीते चार दिन पूर्व गांव की दो युवतियों को साथ लेकर चेन्नई चले गए थे। बाद में संपर्क में आने पर परिजनों और समाज के कुछ सदस्यों ने उन्हें भोपाल बुलवाया, जहां से सभी को शिप्रा के जरिए ओंकारेश्वर स्थित गांव इनपुन लाया गया। लेकिन गांव पहुंचने के बाद हालात पूरी तरह बदल गए।
अलग-अलग कमरों में बंद, बाहर समाज की 'नज़रबंदी'
युवकों और युवतियों को गांव लाने के बाद समाज के प्रभावशाली लोगों की मौजूदगी में उन्हें अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया गया। घर के बाहर परिजन और सामाजिक प्रतिनिधि डटे रहे। लेकिन कोई यह नहीं समझ पाया कि भीतर बंद दो किशोर अपने जीवन का अंतिम निर्णय लेने जा रहे हैं।
करीब आधे घंटे बाद जब कमरा खोला गया, तो मनीष और लकी रोशनदान से फंदे पर लटके मिले। दोनों की सांसें थम चुकी थीं। घटनास्थल पर मौजूद लोगों और परिजनों में कोहराम मच गया।
समाज की चुप्पी और संवादहीनता बनी काल?
यह आत्महत्या नहीं, समाज की उस कठोर चुप्पी का परिणाम थी, जो अक्सर युवा मन की भावनाओं को अपराध मान बैठती है। यह वही मानसिकता है, जो संवाद के स्थान पर दबाव, तिरस्कार और शर्मिंदगी को औजार बना देती है।
क्या प्यार करना अपराध है?
क्या युवाओं को आज भी अपनी भावनाएं खुलकर रखने की इजाज़त नहीं?
क्या समाज का 'इज़्ज़त बचाओ' अभियान अब ज़िंदगी लीलने लगा है?
पुलिस जांच जारी, मर्ग कायम
घटना की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची। शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। मोरटक्का चौकी पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी है। युवतियों के बयान भी लिए जा रहे हैं। पुलिस अब उन परिस्थितियों की तह तक पहुंचने की कोशिश में है, जिन्होंने इन किशोरों को यह रास्ता चुनने पर मजबूर किया।