खुश होने का दिखावा करने में ज्यादा खर्च होती है जीवन की ऊर्जा

आज की दौड़भाग भरी जिंदगी में कई लोग अंदर से दुखी हैं लेकिन बाहर से खुद को खुश दिखाने की कोशिश करते हैं। ये ही लोग दिखावा करने के अलावा खुद को जबरदस्ती खुश रखने की भी कोशिश करते हैं, लेकिन सदगुरू के अनुसार इस तरह से बनावटी जीवन जीने में बहुत ऊर्जा खत्म हो जाती है। जिससे कोई भी इंसान अंदर से या पूरी तरह खुश नहीं रह सकता।
आप जितना निराश महसूस करेंगे, उतना ही लोगों के साथ की जरूरत आपको महसूस होगी। लेकिन आप जितना खुश होंगे, आप भीतर से उतना ही उल्लासित और उत्साहित महसूस करेंगे। तब आपको लोगों के साथ की जरूरत उतनी ही कम महसूस होगी। किसी भी व्यक्ति में उल्लास को पैदा नहीं किया जा सकता। अगर यह ओढ़ा हुआ या कृत्रिम रूप से बनाया उल्लास है तो बेशक आपको लोगों के साथ की जरूरत महसूस होगी। अक्सर लोग उल्लास या आनंद का मतलब संगीत सुनना, नाचना और झूमना समझते हैं। जबकि आप शांति से बैठकर भी आनंद महसूस कर सकते हैं।
मेहनत का काम बनावटी हंसी 
अगर आप आनंदित होकर कोई काम करते हैं तो आपको मेहनत करने की जरूरत नहीं होती। इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम जीवन में खुश न होने पर भी लगातार खुद को बेहद खुश दिखाने की कोशिश करना है। इस तरह का दिखावा करने में बहुत बड़ी मात्रा में जीवन ऊर्जा लगती है। लोग बनावटी हंसी और खुशी बनाए रखते हैं, जिसमें उन्हें जबरदस्त उर्जा खर्च करनी पड़ती है। इससे गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं।


पंडित दया शंकर मिश्रा 
९३०००४९८८७  

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