नीतीश-पासवान की जोड़ी क्‍या गुल खिलाएगी? अंबेडकर जयंती पर खुलेगा राज

बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान अंबेडकर जयंती पर एक मंच पर नजर आएंगे. दोनों के बीच हाल के दिनों में बढ़ी नजदीकी को राजनीतिक गलियारों में काफी गहराई से देखा जा रहा है और इससे अफवाहों को भी हवा मिली है. पिछले एक महीने में दोनों नेता चार बार मिल चुके हैं.

नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने कहा है कि 14 अप्रैल का कार्यक्रम ऐतिहासिक होगा. यह जयंती ऐसे समय में आ रही है जब पूरे देश में SC/ST एक्‍ट में बदलाव को लेकर माहौल गरम है और बिहार में भी साम्‍प्रदायिक तनाव है. बिहार में एनडीए की तीसरी साथी राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी भी इस कार्यक्रम में शामिल होगी. उसके नेता और केंद्रीय मंत्री उपेन्‍द्र कुशवाहा ने नीतीश और पासवान के बयानों का समर्थन भी किया है. इन दोनों ने भड़काऊ बयानों को लेकर बीजेपी नेताओं की आलोचना की थी. दोनों ने समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की जरूरत पर जोर दिया है.

बीजेपी नेताओं के साम्‍प्रदायिक ध्रुवीकरण वाले बयानों के बाद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश की जदयू और पासवान की एलजेपी को मुसलमानों व दलितों से दूर जाने का डर लग रहा है. लोहियावादी नीतीश जन नायक कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा के करीबी रहे हैं. ठाकुर ने पिछड़ों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी.

नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से हैं, लेकिन, जब वो लालू के साथ थे और अपनी राजनीति के शुरुआती सालों के अलावा उन्होंने कभी भी जाति की राजनीति का समर्थन नहीं किया. हालांकि, उन्होंने कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा का समर्थन किया. कर्पूरी ठाकुर ने पहली बार ओबीसी में मोस्ट बैकवर्ड क्लास की (एमबीसी) पहचान की थी.


नीतीश ने एक कदम आगे बढ़कर 2007 में दलितों में महादलित नाम का एक अलग समूह बनाया. जिसका राम विलास पासवान ने जोरदार विरोध किया. क्योंकि उनका मानना था कि यह दलितों के वोट बांटने की कोशिश है. महादलित आयोग की सिफारिशों पर, 22 दलित जातियों में से 18 (धोबी, मुसहर, नट, डोम और अन्य) को महादलित का दर्जा दिया गया. दलितों की कुल आबादी में इनकी संख्या 31 फीसदी के लगभग थी. बाद में चमार, पासी और धोबी को भी इस सूची में शामिल किया गया, जिसने राम विलास पासवान को और भी परेशान कर दिया. दिलचस्प बात यह है कि, अब केवल दुसाध और पासवान समुदाय के लोग ही महादलित से बाहर हैं. बिहार में दलितों का 16 प्रतिशत वोट हिस्सा है, जिसमें दुसाध समुदाय के पांच प्रतिशत वोट शामिल हैं. ये वर्ग राम विलास पासवान के साथ है.

जाहिर है, नीतीश के कदम ने एक दलित नेता के रूप में पासवान की छवि को नुकसान पहुंचाया. इस मामले में एक मांग नीतीश कुमार के सामने रखी गई कि दलित और महादलितों के बीच अंतर को खत्म किया जाए और पासवान समुदाय के लोगों को महादलित में शामिल किया जाए. नीतीश कुमार इस संबंध में 14 अप्रैल को घोषणा कर सकते हैं. कई जद(यू) के नेताओं का मानना ​​है कि इससे उन्हें गैर-यादव ओबीसी/ईबीसी और दलित वोट बैंक बनाने में मदद मिलेगी.


न सिर्फ पासवान और दलित सेना ने बल्कि महादलितों सहित दूसरे नेताओं ने भी इसका विरोध किया. धोबी समुदाय से आने वाले वरिष्ठ जद(यू) नेता श्याम रजक कहते हैं, "महादलित विकास मिशन और कमीशन का निर्माण नीतीश जी द्वारा कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए किया गया है. इससे ज़्यादा कुछ नहीं. आरक्षण के बंटवारे जैसा इसमें कोई मुद्दा नहीं है.

तो नीतीश के सामने क्या विकल्प हैं? जद(यू) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "अगर वह दलित और महादलितों को एक में मिला देते हैं तो उनको महादलितों का जो समर्थन मिल रहा है वो खत्म हो जाएगा. इसलिए नीतीश महादलितों की सूची में पासवान समुदाय को भी शामिल करेंगे."

न्‍यूज 18 से बात करते हुए, राज्य के शहरी विकास मंत्री महेश्वर हजारी ने कहा, "हमने दुसाध समुदाय को महादलित मानने का अनुरोध किया है. 14 अप्रैल को हम अपनी मांगों को फिर से उठाएंगे. हम उम्मीद कर रहे हैं कि वह (नीतीश) हमारी बात सुनेंगे. "

नीतीश जाति आधारित किसी भी समारोह में भाग लेने से बचते हैं. पिछले हफ्ते पासवान समुदाय ने बाबा चौहरमल जयंती मनाया, जिसे वे भगवान के रूप में मानते हैं. उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी समेत पार्टी के कई नेता मोकामा गए जहां उनका मंदिर बना है. नीतीश ने हालांकि अपने को इससे दूर रखा.


इसलिए, नीतीश का दलित सेना द्वारा आयोजित किये जाने वाला अम्बेडकर जयंती समारोह में उपस्थित होना महत्वपूर्ण हैं. इससे उन्हें महादलित नेता जीतन राम मांझी के लालू द्वारा हाथ मिलाने के बाद होने वाले नुकसान की भरपाई करने का भी मौका मिलेगा.

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