नीति आयोग को नई पहचान देने में नाकाम रहे पनगढ़िया

नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का इस्तीफा ऐसे वक्त पर आया है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार देश के आर्थिक कायापटल की योजनाओं को लागू करने के मध्य में है.
निश्चित तौर पर इस वक्त सरकार के एक बेहद अहम जानकार शख्स का इस तरह से जाना ठीक नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसके पीछे कोई बड़ी वजह न हो. और यह भी साफ नहीं है कि आखिर किस वजह से पनगढ़िया ने इस्तीफा देने का फैसला किया. उनके जाने की वजह यह आई कि वह अध्यापन के अपने पसंदीदा काम में लौटना चाहते हैं.
खुद पीएम मोदी ने सौंपी थी नीति आयोग की कमान
हालांकि, यह थोड़ी सी चौंकाने वाली बात जरूर है. वजह यह है कि खुद प्रधानमंत्री ने उन्हें जनवरी 2015 में नए थिंक टैंक नीति आयोग की कमान सौंपी थी और काम अभी शुरू ही हुआ था.
पनगढ़िया को सरकार की नीतियां तैयार करने की मशीनरी में सबसे अहम माने जाने वाले पदों में से एक दिया गया था और भारतीय-अमेरिकी इकनॉमिस्ट को पता था कि उनके ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेदारी है.
सरकार की सकारात्मक आलोचना में नाकाम
इसके अलावा नीति आयोग में अपने ढाई साल के कामकाज के दौरान पनगढ़िया और सरकार के बीच ज्यादातर नीतिगत-आर्थिक मसलों पर सहमति दिखाई दी. इनमें विवादित नोटबंदी का फैसला भी है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि नीति आयोग ने अक्सर कई नीतिगत पहलों पर सरकार का समर्थन किया और उसका बचाव किया.
इस मामले में वह चीजों को दुरुस्त करने वाली और सरकार को सही राय देने वाली इकाई की भूमिका से डिग गई जिसके लिए मूल रूप में इसका गठन किया गया था. ऐसे में बेहद अहम वक्त पर और दोस्ताना बॉस के साथ काम करने के बावजूद उनका इस्तीफा काफी चौंकाता है.
उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाया आयोग
गुजरे ढाई साल नीति आयोग के लिए निराशाजनक रहे हैं. संस्थान बड़े तौर पर शुरुआती उम्मीदों को पूरा करने में नाकाम रहा है. साथ ही यह एक ऐसी संस्था के तौर पर भी नहीं उभर सका है जो कि सरकार की सकारात्मक आलोचना कर सके और गलत नीतिगत फैसलों पर सरकार को सही रास्ता दिखा सके.
पनगढ़िया को 5 जनवरी 2015 को नीति आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया. नेहरू युग के नीतियां बनाने के अंतिम प्रमाण योजना आयोग को थका-हारा बताकर उसे खत्म कर एक नई संस्था नीति आयोग को इस आधार पर तैयार किया गया कि यह मोदी सरकार को एक नई सोच देगी. यह माना गया कि नीति आयोग पुरानी घिसीपिटी नीतिगत प्रक्रियाओं को खत्म करेगा और नए आइडिया लाएगा.

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