रीवा, मध्य प्रदेश – प्रदेश के रीवा जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न सिर्फ शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि सरकारी नियुक्ति प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को लेकर गंभीर चिंता भी जताई है। एक युवक ने एक ऐसी महिला को अपनी मां बताया, जिसने कभी शिक्षा विभाग में काम ही नहीं किया था और इस झूठे दावे के आधार पर उसने अनुकंपा नियुक्ति हासिल कर ली।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला रीवा जिला शिक्षा कार्यालय में तब उजागर हुआ जब एक व्यक्ति ने सहायक शिक्षिका के पद पर कार्यरत एक महिला की मृत्यु का झूठा दावा करते हुए खुद को उसका बेटा बताया और सरकारी नौकरी पा ली। जांच के बाद यह खुलासा हुआ कि न तो मृत महिला कभी शिक्षा विभाग की कर्मचारी थी और न ही उसका उस व्यक्ति से कोई रिश्ता था।
कलेक्टर ने दिए कड़े आदेश, फर्जीवाड़े की जांच शुरू
मामले की गंभीरता को देखते हुए रीवा कलेक्टर ने दोषी क्लर्क को निलंबित कर दिया है और डीईओ व संबंधित अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की है। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि बिना किसी वैध प्रक्रिया के फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर नियुक्ति दी गई थी। इस संबंध में रीवा पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश की धाराओं में मामला दर्ज किया है।
फर्जीवाड़े की परतें खुलीं, 5 और नियुक्तियां संदिग्ध
यह घोटाला उस वक्त गहराया जब स्कूल प्रिंसिपल ने वेतन भुगतान प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजों में गड़बड़ी की सूचना दी। इसके बाद शिक्षा विभाग की तीन सदस्यीय जांच समिति ने पांच और अनुकंपा नियुक्तियों में फर्जीवाड़ा उजागर किया। ये नियुक्तियां रीवा, बीहर, अतरैला, सेमरिया और गंगेव जैसे ब्लॉकों में की गई थीं।
प्रकरण में प्रकाश, सुभाष, कोल, हरीशचंद्र और रमा द्विवेदी जैसे नामों की संलिप्तता सामने आई है। ये सभी नियुक्तियां फर्जी प्रमाण-पत्रों के आधार पर की गई थीं, और दस्तावेजों की पुष्टि में अधिकांश ‘मृतक कर्मचारी’ या तो कभी विभाग में कार्यरत नहीं रहे या जिनकी नियुक्ति ही अस्तित्व में नहीं थी।
36 में से 10 नियुक्तियां संदिग्ध, डीईओ की भूमिका पर भी सवाल
पिछले सालों में रीवा जिले में 36 अनुकंपा नियुक्तियां हुईं, जिनमें से अब तक 10 पर गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं। आरोप है कि इन फर्जी नियुक्तियों को कराने में कुछ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध रही है। कई बार संबंधित नोडल अधिकारियों द्वारा सूचना देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।