जबलपुर। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर शिवांश गुप्ता की आत्महत्या मामले ने अब एक गंभीर मोड़ ले लिया है। परिजनों ने दावा किया है कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि मानसिक प्रताड़ना का नतीजा है, जो कथित रैगिंग की वजह से हुआ। परिजनों ने सीधे तौर पर कॉलेज प्रबंधन और सीनियर छात्रों को कटघरे में खड़ा किया है।
आखिरी कॉल में मां से बयां किया दर्द
मृतक डॉक्टर के चाचा दिनेश गुप्ता ने मीडिया से बातचीत में बताया कि शिवांश ने खुदकुशी से तीन दिन पहले अपनी मां को फोन किया था। कॉल में उसने कहा – "मां, मैंने जो नई बाइक ली है, वो सीनियर्स को खटक रही है। वे मुझे लगातार परेशान कर रहे हैं। मैं बहुत डिप्रेशन में हूं।"
परिजनों के अनुसार, सीनियर छात्रों ने शिवांश को तीन घंटे तक एक कमरे में बंद रखा और उसके साथ मारपीट की। यह जानकारी शिवांश ने खुद अपनी मां को दी थी।
परिजन बोले – रैगिंग से टूट चुका था शिवांश
शिवांश के चाचा ने आरोप लगाया कि छात्र रैगिंग से पूरी तरह टूट चुका था और उसने यह बात अपने दो साथियों को भी बताई थी। लेकिन अब कॉलेज प्रशासन के दबाव में वे दोनों साथी चुप हैं। परिवार ने मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. नवनीत सक्सेना पर मामले को दबाने का गंभीर आरोप लगाया है और कहा कि "डीन की लापरवाही और निष्क्रियता ने हमारे बच्चे की जान ले ली।"
प्रशासन की सफाई और परिजनों की मांग
मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. नवनीत सक्सेना ने रैगिंग की किसी भी संभावना से इनकार करते हुए कहा है कि हॉस्टल में केवल फर्स्ट ईयर के छात्र रह रहे थे, ऐसे में रैगिंग संभव नहीं है। हालांकि, उन्होंने मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है।
परिजनों ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच हो और आरोपी छात्रों के मोबाइल फोन सर्विलांस पर रखे जाएं ताकि सच्चाई सामने आ सके। साथ ही डीन नवनीत सक्सेना की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच हो।