सागर-जबलपुर।मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सागर जिले के पांच शिक्षकों को स्कूल में पढ़ाई के नाम पर घोर लापरवाही और अनुशासनहीनता के चलते बर्खास्त कर दिया गया है। इन शिक्षकों ने सरकारी नौकरी की जिम्मेदारी को दरकिनार करते हुए अपने स्थान पर पैसों के बदले निजी व्यक्तियों को पढ़ाने के लिए रख रखा था। जांच में दोषी पाए जाने के बाद कलेक्टर संदीप जी. आर. ने यह कड़ी कार्रवाई की।
इन शिक्षकों ने स्कूलों में 'ठेके की शिक्षा प्रणाली' चला रखी थी जहां शिक्षक खुद स्कूल नहीं जाते थे, बल्कि तीन से चार हजार रुपये प्रतिमाह पर भाड़े के अध्यापक नियुक्त कर रखे थे। ये भाड़े के लोग बच्चों को पढ़ाने आते थे, जबकि नियुक्त शिक्षक सप्ताह में केवल एक दिन स्कूल का रुख करते थे वह भी तब, जब किसी अधिकारी के निरीक्षण की भनक लगती थी।
सागर में खुले खेल का पर्दाफाश
यह मामला रहली, मालथौन, खुरई और जैसीनगर विकासखंड के शासकीय स्कूलों का है। जिला प्रशासन को जब इस गड़बड़ी की सूचना मिली, तो तत्काल जांच समिति गठित करवाई गई। जांच में पाया गया कि शिक्षक लंबे समय से स्कूल नहीं जा रहे थे, और उनके स्थान पर अस्वीकृत, निजी व्यक्ति नियमित रूप से बच्चों को पढ़ा रहे थे।
जांच में दोषी पाए गए शिक्षक और उनके स्थान पर पढ़ा रहे लोग:
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अनिल मिश्रा – प्राथमिक शिक्षक, रहली। अपने स्थान पर भगवान दास सकवार को पढ़ाने भेजते थे।
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जानकी तिवारी – जैसीनगर की बंजरिया स्कूल में तैनात, स्थान पर गोकल प्रसाद प्रजापति।
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अवतार सिंह ठाकुर – खुरई के कजरई स्कूल से, स्थान पर राहुल पंडित।
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रूपसिंह चढ़ार – मालथौन के भेलैया स्कूल में तैनात, स्थान पर विक्रम सिंह लोधी।
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इन्द्र विक्रम सिंह परमार – मालथौन के मंझेरा स्कूल में, स्थान पर ममता अहिरवार।
कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला। गवाहों और दस्तावेजों के आधार पर आरोप प्रमाणित पाए गए। इसके बाद पांचों शिक्षकों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
जबलपुर में भी स्थिति गंभीर, जांच जरूरी
सिर्फ सागर ही नहीं, जबलपुर जिले के कुछ शहरी शासकीय विद्यालयों में भी इसी तरह का 'शिक्षा का कारोबार' फल-फूल रहा है। यहां भी कई शिक्षिकाएं 3 से 4 हजार रुपये में टीचर किराए पर रख चुकी हैं। वे महीने में एक-दो दिन स्कूल आती हैं, वह भी केवल तब जब उन्हें किसी अधिकारी के दौरे की खबर होती है।
विशेष रूप से उन स्कूलों में यह चलन बढ़ा है जहां छात्रों की संख्या कम है और निगरानी भी ढीली है। अभिभावकों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना को इस मामले में तुरंत जांच बैठानी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आए और लापरवाह कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई हो सके।