बेंगलुरु |एक क्रिकेट टीम की जीत पर जश्न मनाना जनता का हक़ है, लेकिन जब वही जश्न सरकारी अदूरदर्शिता, आयोजकों की लापरवाही और सुरक्षा व्यवस्था की नाकामी के नीचे दम तोड़ दे, तो सवाल सिर्फ चूक का नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारों की जवाबदेही का उठता है।
बुधवार को बेंगलुरु में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरु (RCB) की IPL जीत का जश्न आयोजित किया गया, लेकिन यह जश्न जल्द ही 11 परिवारों के लिए मातम बन गया। भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और 30 से ज्यादा लोग घायल हुए। ये हादसा महज भीड़ का उफान नहीं था, बल्कि यह एक सुनियोजित लापरवाही की बर्बर परिणति थी।
इतिहास रचने की हड़बड़ी में मारी गई इंसानियत
सरकार और RCB ने इस विजय समारोह को "ऐतिहासिक" बनाने की तैयारी तो की, लेकिन लाखों की भीड़ को संभालने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। स्टेडियम के बाहर करीब तीन लाख लोग इकट्ठा हो गए, जबकि वहां की अधिकतम क्षमता महज़ 35,000 थी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ 5,000 पुलिसकर्मी थे यानी 60 लोगों पर एक पुलिसकर्मी। न सुरक्षा का मापदंड, न भीड़ नियंत्रण की प्लानिंग, और न ही आपात स्थितियों से निपटने का कोई स्पष्ट ब्लूप्रिंट।
स्लैब टूटा, दिल भी टूटे
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि भीड़ गेट तोड़कर भीतर घुसने की कोशिश कर रही थी। इसी अफरातफरी में एक अस्थायी स्लैब ढह गया, जिससे भगदड़ मच गई। लोग एक-दूसरे पर गिरते गए, चीख-पुकार मच गई, और नतीजा ये कि कई लोगों की जान चली गई। घटनास्थल पर बिखरे जूते-चप्पल, टूटे मोबाइल और खून के धब्बे उस खौफनाक पल की गवाही दे रहे थे, जिसे अब आयोजक एक "दुर्घटना" कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं।
राजनीति ने ली सेंटर स्टेज, जवाबदेही गायब
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घटना को "अप्रत्याशित" करार दिया और मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की। लेकिन विपक्ष ने इसे "आपराधिक लापरवाही" कहा। बीजेपी नेता बी.वाई. विजयेंद्र ने आरोप लगाया कि सरकार ने बिना पर्याप्त तैयारी के रैली को अनुमति दी और BCCI और RCB पर सवाल खड़े किए कि आखिर इस आयोजन की इतनी जल्दी क्या थी?
क्रेडिट की राजनीति, जिम्मेदारी की शून्यता
सरकार ने खुद को अलग करते हुए कहा कि "इस आयोजन का संचालन BCCI और फ्रेंचाइज़ी RCB कर रही थी", जबकि आयोजकों ने कहा कि सभी आवश्यक अनुमति सरकार से मिली थी। यानी, क्रेडिट के लिए मंच पर खड़े सभी चेहरे अब हादसे के बाद पर्दे के पीछे छिप रहे हैं।
सबक या सिर्फ आंकड़े?
हर साल हम ऐसी खबरें सुनते हैं कहीं कोई धार्मिक आयोजन में भगदड़, कहीं कोई राजनैतिक रैली में मौतें। लेकिन क्या कभी किसी की जवाबदेही तय होती है? क्या किसी अफसर या आयोजक पर हत्या जैसी सख्त धाराएं लगती हैं? या फिर हम सब मिलकर इस समाज को आंकड़ों में तब्दील कर चुके हैं "11 मरे, 30 घायल", और फिर अगली सुबह अखबार पलटकर आगे बढ़ जाते हैं।