
श्याम सुंदर शर्मा मथुरा की मांट विधानसभा चुनाव से पहली बार जब विधायक चुने गए तब उनकी गिनती ज़िले के उभरते युवा नेताओं में होती थी. वो साल था 1989.
श्याम सुंदर शर्मा के हमउम्र जो लोग सरकारी नौकरी में थे, वो सब अब रिटायर हो चुके हैं, लेकिन श्याम सुंदर शर्मा 'चुनावी राजनीति की पिच' पर पूरी मुस्तैदी से डटे हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "मैं जब मंत्री था, तब एक विदेश दौरे पर पूछ लिया गया कि तुम कौन सा खेल खेलते हो? हम मोटे तो थे ही, मैंने कहा, ज़िंदगी में कोई खेल नहीं खेला हमने. एक खेल खेला है राजनीति का. उसमें कभी आउट नहीं हुए."
श्याम सुंदर शर्मा ने राजनीति में जीतने का हुनर साधा हुआ है. उत्तर प्रदेश ने बीते 33 सालों में कई बदलाव देखे हैं. राम मंदिर आंदोलन से लेकर नरेंद्र मोदी की लहर का असर तक देखा है, लेकिन इनमें से किसी भी मुद्दे का ऐसा प्रभाव नहीं हुआ कि मांट विधानसभा सीट से श्याम सुंदर शर्मा के पाँव उखड़ जाएं.
मथुरा में 80 बनाम 20
श्याम सुंदर शर्मा मौजूदा विधानसभा चुनाव में दम आज़मा रहे मथुरा के ऐसे इकलौते नेता नहीं हैं, जो 1980 के दशक में पहली बार विधायक चुने गए हों और अब यानी 2020 के दशक में अपनी सीट पर मुक़ाबले में हों. तीन
दशक पहले चुनावी राजनीति में जीत हासिल करने वाले ये नेता अभी भी मैदान मारने का इरादा रखते हैं. मथुरा में कई लोग इसे ही 80/20 कह रहे हैं.
मथुरा की छाता विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण साल 1985 में पहली बार विधायक चुने गए थे. उनकी टक्कर 1990 के दशक के शुरुआती सालों में पहली बार विधायक बने ठाकुर तेजपाल सिंह से है.
मथुरा-वृंदावन सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप माथुर भी साल 1985 में पहली बार विधायक चुने गए थे. साल 2022 के चुनाव में उन्हें बीजेपी विधायक और मंत्री श्रीकांत शर्मा का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है.
लक्ष्मी नारायण और प्रदीप माथुर विधानसभा पहुँचने के मामले में श्याम सुंदर शर्मा से पाँच साल आगे रहे, लेकिन श्याम 1989 से यूपी की हर विधानसभा का हिस्सा रहे हैं.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद वो कुछ महीने के लिए विधायक नहीं थे. उस चुनाव में मथुरा के तत्कालीन सांसद और राष्ट्रीय लोकदल नेता चौधरी जयंत सिंह ने उन्हें हरा दिया. लेकिन कुछ ही महीने बाद जयंत ने इस्तीफ़ा दिया और मांट के वोटरों ने एक बार फिर श्याम सुंदर शर्मा को विधानसभा पहुँचा दिया. वो आठ बार विधायक रह चुके हैं और इस बार रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं.
श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं, "तीन लोकों से मथुरा न्यारी है. मथुरा में मांट न्यारी है. यहाँ संकीर्ण विचारधारा की राजनीति नहीं होती है."
वो आगे कहते हैं, "मैं हर चुनाव को चुनौतीपूर्ण ढंग से लेता हूँ. मैं चुनौती का समाधान विनम्रता से करता हूँ. समाधान शालीनता से करता हूँ. प्रेम और स्नेह से करता हं. उसी आधार पर मैं आठ बार और उसके पहले मेरे फ़ादर एमएलए रह लिए. मैंने किसी राजनीतिक दल की परवाह नहीं की.
पिछला चुनाव मैं बसपा से लड़ा था. उसके पहले तो मैं निर्दलीय रहा हूँ. तृणमूल कांग्रेस से ममता वाली पार्टी से रह लिया. चार बार लोकतांत्रिक कांग्रेस से रह लिया. एक बार तिवारी कांग्रेस से रह लिया. एक बार इंडिपेंडेंट रह लिया. "
वो कहते हैं, " हमारे यहां जातिवाद धर्मवाद का कुछ महत्व नहीं है. हमारे यहाँ केवल कर्मवाद का महत्व है. मेरे क्षेत्र का बच्चा-बच्चा मेरे लिए मंत्री है. उसके लिए मैं संतरी हूँ. बच्चा-बच्चा गौरव महसूस करता है कि बन गया श्याम सुंदर शर्मा तो हम ही बन गए."
विरोधी हर बार श्याम सुंदर शर्मा को उनके गढ़ यानी मांट में घेरने की कोशिश करते रहे हैं. इस बार जो दो उम्मीदवार उनके मुक़ाबले में बताए जा रहे हैं, वो भी श्याम को हराने का दम भर रहे हैं. पिछले चुनाव में श्याम सुंदर शर्मा को क़रीब 400 वोटों के अंतर से ही जीत मिली थी.
सबके अपने दावे
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने मांट में संजय लाठर को उम्मीदवार बनाया है. भारतीय जनता पार्टी ने यहाँ राजेश चौधरी को मैदान में उतारा है. उनके समर्थन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और गिरिराज सिंह जैसे बड़े नेता प्रचार कर चुके हैं.
राजेश चौधरी कहते हैं, "मांट क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का कमल खिलेगा. मांट की जनता चाहती है कि विकास हो. लोग मन बना चुके हैं कि उन्हें मोदी जी और योगी जी के साथ बढ़ना है."
वो कहते हैं, "मांट उत्तर प्रदेश की सबसे पिछड़ी विधानसभा है. विधायक चाहते तो यहाँ विकास हो सकता था. यहाँ कोई इलाज का साधन नहीं है. डिग्री कॉलेज नहीं है. ये विधायक की देन है. वो झगड़ा कराने के अलावा कुछ नहीं करते हैं. मैं चाहता हूँ कि इस क्षेत्र का विकास हो. यहाँ उद्योग विकसित हों."
समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार संजय लाठर भी जीत का दम भर रहे हैं. पिछली बार श्याम सुंदर शर्मा को कड़ी टक्कर देने वाले योगेश नौहवार ने इस बार भी पर्चा दाखिल किया था, लेकिन बाद में राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी नेताओं के दबाव में चुनाव मैदान से हट गए.
अब लाठर ख़ुद को मज़बूत बता रहे हैं. उनके चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे सौरभ चौधरी कहते हैं, "एकतरफ़ा है मामला. 2012 में संजय लाठर और योगेश नौहवार दोनों ने चुनाव लड़ा था. एक को 50 हज़ार और दूसरे को 60 हज़ार वोट मिले. अब दोनों पार्टी साथ हैं तो एक लाख दस हज़ार वोट तो ही जाते हैं. "
वो भी आरोप लगाते हैं कि श्याम सुंदर शर्मा ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया.
80 के दशक में मांट में जीत का खाता खोलने वाले श्याम सुंदर शर्मा 2022 में भी जीत का सिलसिला जारी रखना चाहते हैं.
वो विरोधियों के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, "हमें प्रमाण पत्र विरोधियों का या मीडिया का नहीं चाहिए. मुझे प्रमाणपत्र जनता जनार्दन का चाहिए. वो जो कहते हैं मैं कर देता हूँ. जनता मुझसे बहुत संतुष्ट है. मैं अकेला आदमी हूँ उत्तर प्रदेश के अंदर कि मेरे ख़िलाफ़ कोई बग़ावत नहीं करता. बदतमीज़ी नहीं करता. मेरी मीटिंग में उठकर बोलता भी नहीं."
छाता सीट का हाल
मथुरा की छाता विधानसभा के विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण भी दावा कर रहे हैं कि उनकी जीत पक्की है.
वो कहते हैं, "हमारे क्षेत्र में जातिवाद कभी नहीं रहा. पिछली बार मेरे क्षेत्र में 398 बूथ थे कुल टोटल. अब 407 हैं. 398 में से मैं 289 बूथों पर जीता. अबकी भी निश्चित रूप से मैं 407 बूथ में से कम से कम 390 और 395 बूथ पर जीतूँगा."
चौधरी लक्ष्मी नारायण को टक्कर दे रहे सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी ठाकुर तेजपाल सिंह को राजपूत समुदाय का अच्छा समर्थन माना जाता है. वहीं, स्थानीय जाट मतदाता लक्ष्मी नारायण के समर्थक माने जाते हैं.
ये स्थिति प्रदेश के बाक़ी ज़िलों से अलग है. राजनीतिक विश्लेषक दावा कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे की वजह से अधिकतर ठाकुर वोटरों का समर्थन बीजेपी के साथ है. वहीं जाट वोटरों का एक हिस्सा राष्ट्रीय लोकदल के साथ है. गृह मंत्री अमित शाह की ओर से लोकदल प्रमुख चौधरी जयंत सिंह को साथ आने के लिए दिए गए संकेत की बड़ी वजह इसे ही माना गया.
हालाँकि, चौधरी लक्ष्मीनारायण कहते हैं, "भारतीय जनता पार्टी कभी जातिवाद की राजनीति नहीं करती, हम राष्ट्रवाद की राजनीति करते हैं. मैं अकेले जाट के ऊपर कभी (विधायक ) नहीं बन सकता था. कोई अकेले ठाकुर के वोट पर एमएलए नहीं बन सकता."
चौधरी लक्ष्मीनारायण चार बार विधायक बन चुके हैं, लेकिन कभी लगातार दो बार विधायक नहीं बने. वो और तेजपाल सिंह बारी-बारी से छाता क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.
इसे लेकर वो कहते हैं, "ये एक मिथक है. योगी और मोदी के ज़माने में इन मिथकों को ही तो तोड़ा है भारतीय जनता पार्टी ने. पिछली बार तो वो लड़े ही नहीं थे. अबकी उनका ही हारने का नंबर है. "
चौधरी लक्ष्मीनारायण का पिछली बार मुक़ाबला ठाकुर तेजपाल के बेटे से हुआ था. तेजपाल भी जीत का दम भर रहे हैं.
उनके चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे उमाशंकर सिंह ने कहा, "सौ फ़ीसदी हम चुनाव जीत रहे हैं. जनता त्रस्त है. महंगाई और किसान आंदोलन प्रमुख मुद्दे हैं. जनता इनकी गुंडागर्दी से त्रस्त है."
मथुरा में क्या होगा?
उधर, शहर की सीट यानी मथुरा वृंदावन विधानसभा क्षेत्र में भी 1980 के दशक में पहली बार विधायक बने प्रदीप माथुर मुख्य मुक़ाबले में माने जा रहे हैं.
वो ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को चुनौती दे रहे हैं.
कांग्रेस नेता माथुर चार बार विधायक रह चुके हैं. इनमें से तीन बार वो लगातार विधायक रहे. वो अपने काम गिनाते हुए वोटरों से साथ आने की अपील कर रहे हैं.
दूसरी तरफ़ बीजेपी उनकी चुनौती को ख़ारिज कर रही है.
बीजेपी के ज़िला महासचिव प्रदीप गोस्वामी दावा कहते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी पिछली बार से ज़्यादा वोटों से जीत हासिल करेंगे.
पिछली बार श्रीकांत शर्मा ने एक लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी.
इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के एसके शर्मा भी मुक़ाबले में हैं. वो मांट सीट से बीजेपी की टिकट के दावेदार थे. टिकट कटने पर वो बीएसपी में शामिल हो गए और मथुरा सीट पर उम्मीदवार बन गए.
श्याम सुंदर शर्मा के हमउम्र जो लोग सरकारी नौकरी में थे, वो सब अब रिटायर हो चुके हैं, लेकिन श्याम सुंदर शर्मा 'चुनावी राजनीति की पिच' पर पूरी मुस्तैदी से डटे हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "मैं जब मंत्री था, तब एक विदेश दौरे पर पूछ लिया गया कि तुम कौन सा खेल खेलते हो? हम मोटे तो थे ही, मैंने कहा, ज़िंदगी में कोई खेल नहीं खेला हमने. एक खेल खेला है राजनीति का. उसमें कभी आउट नहीं हुए."
श्याम सुंदर शर्मा ने राजनीति में जीतने का हुनर साधा हुआ है. उत्तर प्रदेश ने बीते 33 सालों में कई बदलाव देखे हैं. राम मंदिर आंदोलन से लेकर नरेंद्र मोदी की लहर का असर तक देखा है, लेकिन इनमें से किसी भी मुद्दे का ऐसा प्रभाव नहीं हुआ कि मांट विधानसभा सीट से श्याम सुंदर शर्मा के पाँव उखड़ जाएं.
मथुरा में 80 बनाम 20
श्याम सुंदर शर्मा मौजूदा विधानसभा चुनाव में दम आज़मा रहे मथुरा के ऐसे इकलौते नेता नहीं हैं, जो 1980 के दशक में पहली बार विधायक चुने गए हों और अब यानी 2020 के दशक में अपनी सीट पर मुक़ाबले में हों. तीन
दशक पहले चुनावी राजनीति में जीत हासिल करने वाले ये नेता अभी भी मैदान मारने का इरादा रखते हैं. मथुरा में कई लोग इसे ही 80/20 कह रहे हैं.
मथुरा की छाता विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण साल 1985 में पहली बार विधायक चुने गए थे. उनकी टक्कर 1990 के दशक के शुरुआती सालों में पहली बार विधायक बने ठाकुर तेजपाल सिंह से है.
मथुरा-वृंदावन सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप माथुर भी साल 1985 में पहली बार विधायक चुने गए थे. साल 2022 के चुनाव में उन्हें बीजेपी विधायक और मंत्री श्रीकांत शर्मा का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है.
लक्ष्मी नारायण और प्रदीप माथुर विधानसभा पहुँचने के मामले में श्याम सुंदर शर्मा से पाँच साल आगे रहे, लेकिन श्याम 1989 से यूपी की हर विधानसभा का हिस्सा रहे हैं.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद वो कुछ महीने के लिए विधायक नहीं थे. उस चुनाव में मथुरा के तत्कालीन सांसद और राष्ट्रीय लोकदल नेता चौधरी जयंत सिंह ने उन्हें हरा दिया. लेकिन कुछ ही महीने बाद जयंत ने इस्तीफ़ा दिया और मांट के वोटरों ने एक बार फिर श्याम सुंदर शर्मा को विधानसभा पहुँचा दिया. वो आठ बार विधायक रह चुके हैं और इस बार रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं.
श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं, "तीन लोकों से मथुरा न्यारी है. मथुरा में मांट न्यारी है. यहाँ संकीर्ण विचारधारा की राजनीति नहीं होती है."
वो आगे कहते हैं, "मैं हर चुनाव को चुनौतीपूर्ण ढंग से लेता हूँ. मैं चुनौती का समाधान विनम्रता से करता हूँ. समाधान शालीनता से करता हूँ. प्रेम और स्नेह से करता हं. उसी आधार पर मैं आठ बार और उसके पहले मेरे फ़ादर एमएलए रह लिए. मैंने किसी राजनीतिक दल की परवाह नहीं की.
पिछला चुनाव मैं बसपा से लड़ा था. उसके पहले तो मैं निर्दलीय रहा हूँ. तृणमूल कांग्रेस से ममता वाली पार्टी से रह लिया. चार बार लोकतांत्रिक कांग्रेस से रह लिया. एक बार तिवारी कांग्रेस से रह लिया. एक बार इंडिपेंडेंट रह लिया. "
वो कहते हैं, " हमारे यहां जातिवाद धर्मवाद का कुछ महत्व नहीं है. हमारे यहाँ केवल कर्मवाद का महत्व है. मेरे क्षेत्र का बच्चा-बच्चा मेरे लिए मंत्री है. उसके लिए मैं संतरी हूँ. बच्चा-बच्चा गौरव महसूस करता है कि बन गया श्याम सुंदर शर्मा तो हम ही बन गए."
विरोधी हर बार श्याम सुंदर शर्मा को उनके गढ़ यानी मांट में घेरने की कोशिश करते रहे हैं. इस बार जो दो उम्मीदवार उनके मुक़ाबले में बताए जा रहे हैं, वो भी श्याम को हराने का दम भर रहे हैं. पिछले चुनाव में श्याम सुंदर शर्मा को क़रीब 400 वोटों के अंतर से ही जीत मिली थी.
सबके अपने दावे
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने मांट में संजय लाठर को उम्मीदवार बनाया है. भारतीय जनता पार्टी ने यहाँ राजेश चौधरी को मैदान में उतारा है. उनके समर्थन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और गिरिराज सिंह जैसे बड़े नेता प्रचार कर चुके हैं.
राजेश चौधरी कहते हैं, "मांट क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का कमल खिलेगा. मांट की जनता चाहती है कि विकास हो. लोग मन बना चुके हैं कि उन्हें मोदी जी और योगी जी के साथ बढ़ना है."
वो कहते हैं, "मांट उत्तर प्रदेश की सबसे पिछड़ी विधानसभा है. विधायक चाहते तो यहाँ विकास हो सकता था. यहाँ कोई इलाज का साधन नहीं है. डिग्री कॉलेज नहीं है. ये विधायक की देन है. वो झगड़ा कराने के अलावा कुछ नहीं करते हैं. मैं चाहता हूँ कि इस क्षेत्र का विकास हो. यहाँ उद्योग विकसित हों."
समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार संजय लाठर भी जीत का दम भर रहे हैं. पिछली बार श्याम सुंदर शर्मा को कड़ी टक्कर देने वाले योगेश नौहवार ने इस बार भी पर्चा दाखिल किया था, लेकिन बाद में राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी नेताओं के दबाव में चुनाव मैदान से हट गए.
अब लाठर ख़ुद को मज़बूत बता रहे हैं. उनके चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे सौरभ चौधरी कहते हैं, "एकतरफ़ा है मामला. 2012 में संजय लाठर और योगेश नौहवार दोनों ने चुनाव लड़ा था. एक को 50 हज़ार और दूसरे को 60 हज़ार वोट मिले. अब दोनों पार्टी साथ हैं तो एक लाख दस हज़ार वोट तो ही जाते हैं. "
वो भी आरोप लगाते हैं कि श्याम सुंदर शर्मा ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया.
80 के दशक में मांट में जीत का खाता खोलने वाले श्याम सुंदर शर्मा 2022 में भी जीत का सिलसिला जारी रखना चाहते हैं.
वो विरोधियों के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, "हमें प्रमाण पत्र विरोधियों का या मीडिया का नहीं चाहिए. मुझे प्रमाणपत्र जनता जनार्दन का चाहिए. वो जो कहते हैं मैं कर देता हूँ. जनता मुझसे बहुत संतुष्ट है. मैं अकेला आदमी हूँ उत्तर प्रदेश के अंदर कि मेरे ख़िलाफ़ कोई बग़ावत नहीं करता. बदतमीज़ी नहीं करता. मेरी मीटिंग में उठकर बोलता भी नहीं."
छाता सीट का हाल
मथुरा की छाता विधानसभा के विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण भी दावा कर रहे हैं कि उनकी जीत पक्की है.
वो कहते हैं, "हमारे क्षेत्र में जातिवाद कभी नहीं रहा. पिछली बार मेरे क्षेत्र में 398 बूथ थे कुल टोटल. अब 407 हैं. 398 में से मैं 289 बूथों पर जीता. अबकी भी निश्चित रूप से मैं 407 बूथ में से कम से कम 390 और 395 बूथ पर जीतूँगा."
चौधरी लक्ष्मी नारायण को टक्कर दे रहे सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी ठाकुर तेजपाल सिंह को राजपूत समुदाय का अच्छा समर्थन माना जाता है. वहीं, स्थानीय जाट मतदाता लक्ष्मी नारायण के समर्थक माने जाते हैं.
ये स्थिति प्रदेश के बाक़ी ज़िलों से अलग है. राजनीतिक विश्लेषक दावा कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे की वजह से अधिकतर ठाकुर वोटरों का समर्थन बीजेपी के साथ है. वहीं जाट वोटरों का एक हिस्सा राष्ट्रीय लोकदल के साथ है. गृह मंत्री अमित शाह की ओर से लोकदल प्रमुख चौधरी जयंत सिंह को साथ आने के लिए दिए गए संकेत की बड़ी वजह इसे ही माना गया.
हालाँकि, चौधरी लक्ष्मीनारायण कहते हैं, "भारतीय जनता पार्टी कभी जातिवाद की राजनीति नहीं करती, हम राष्ट्रवाद की राजनीति करते हैं. मैं अकेले जाट के ऊपर कभी (विधायक ) नहीं बन सकता था. कोई अकेले ठाकुर के वोट पर एमएलए नहीं बन सकता."
चौधरी लक्ष्मीनारायण चार बार विधायक बन चुके हैं, लेकिन कभी लगातार दो बार विधायक नहीं बने. वो और तेजपाल सिंह बारी-बारी से छाता क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.
इसे लेकर वो कहते हैं, "ये एक मिथक है. योगी और मोदी के ज़माने में इन मिथकों को ही तो तोड़ा है भारतीय जनता पार्टी ने. पिछली बार तो वो लड़े ही नहीं थे. अबकी उनका ही हारने का नंबर है. "
चौधरी लक्ष्मीनारायण का पिछली बार मुक़ाबला ठाकुर तेजपाल के बेटे से हुआ था. तेजपाल भी जीत का दम भर रहे हैं.
उनके चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे उमाशंकर सिंह ने कहा, "सौ फ़ीसदी हम चुनाव जीत रहे हैं. जनता त्रस्त है. महंगाई और किसान आंदोलन प्रमुख मुद्दे हैं. जनता इनकी गुंडागर्दी से त्रस्त है."
मथुरा में क्या होगा?
उधर, शहर की सीट यानी मथुरा वृंदावन विधानसभा क्षेत्र में भी 1980 के दशक में पहली बार विधायक बने प्रदीप माथुर मुख्य मुक़ाबले में माने जा रहे हैं.
वो ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को चुनौती दे रहे हैं.
कांग्रेस नेता माथुर चार बार विधायक रह चुके हैं. इनमें से तीन बार वो लगातार विधायक रहे. वो अपने काम गिनाते हुए वोटरों से साथ आने की अपील कर रहे हैं.
दूसरी तरफ़ बीजेपी उनकी चुनौती को ख़ारिज कर रही है.
बीजेपी के ज़िला महासचिव प्रदीप गोस्वामी दावा कहते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी पिछली बार से ज़्यादा वोटों से जीत हासिल करेंगे.
पिछली बार श्रीकांत शर्मा ने एक लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी.
इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के एसके शर्मा भी मुक़ाबले में हैं. वो मांट सीट से बीजेपी की टिकट के दावेदार थे. टिकट कटने पर वो बीएसपी में शामिल हो गए और मथुरा सीट पर उम्मीदवार बन गए.