पितृपक्ष के एक महीने बाद नवरात्र का रहस्य!


सन 2020 में कुछ न कुछ ऐसा घटित हो रहा है,जो शताब्दियों में हुआ हो।सन 1920 में प्लेग महामारी बनकर आया था तो इस वर्ष कोरोना जी का जंजाल बन गया है। अब देखिए न, प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष जब समाप्त होते थे तो उसके अगले दिन से नवरात्र  आरंभ हो जाते थे।ऐसा किसी एक वर्ष में नही अपितु शताब्दियों से होता आ रहा है। श्राद्ध पक्ष में तिथिवार अपने दिवंगत पूर्वजो का श्राद्ध तर्पण करने की परंपरा है।वही नवरात्र शुरू होते ही देवी घट स्‍थापना व जौ रोपित करने के साथ 9 दिनों तक नवरात्र रूप में सभी नो देवियो की पूजा होती है। क्योंकि पितृ अमावस्‍या के अगले दिन से ही प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है,लेकिन  इस साल ऐसा नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्‍त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा।जिस कारण नवरात्र श्राद्ध पक्ष पूरे होने के एक माह बाद शुरू हो पाएंगे। आश्विन मास में मलमास का लगना और एक महीने के अंतर पर अर्थात एक माह बीतने पर नवरात्र के रूप में दुर्गा पूजा का आरंभ होना एक ऐसा संयोग है जो 165 वर्ष बाद घटित हो रहा है।
जिसके पीछे इस वर्ष में लीप वर्ष होना है। इसीलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का ही होता है, वह भी अब पांच महीने का होगा। ज्योतिष विद्वानों  की मानें तो 160 वर्ष बाद लीप वर्ष आता है और इस बार अधिकमास भी होने के कारण दोनों ही एक साथ इस वर्ष में हो रहे हैं। ज्योतिष विद्वानों की राय में चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं भी होंगे। हालांकि इस दुर्लभ काल में पूजा अर्चना, भागवत कथा, उपवास, साधना और ईश्वरीय याद का विशेष महत्व होता है। कहते है कि इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।तभी मांगलिक कार्य शुरू हो पाते है।इस माह 17 सितंबर  को श्राद्ध खत्म हों जाएंगे। इसके अगले ही दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद ही  17 अक्टूबर से नवरात्र पूजा प्रारंभ हो पाएगी। जबकि 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। तब जाकर चातुर्मास का समापन होगा।एक साथ दो आश्विन मास होने से त्योहारों में भी देरी होगी। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास लगने के कारण ही इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को तो दीपावली लंबी प्रतीक्षा के बाद 14 नवंबर को मनाई जाएगी। खगोलीय घटनाक्रम में देखे तो एक सूर्य वर्ष 365 दिन व  लगभग 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्रमा वर्ष 354 दिनों का बताया गया है। सूर्य व चन्द्रमा के वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्रमा मास अतिरिक्त आ जाता है, इसी को अतिरिक्त होने के कारण  अधिकमास कहा गया है।
अधिकमास को ही मलमास भी कहते हैं। इसका कारण, इस पूरे महीने में शुभ कार्यो का न होना  हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। तभी तो इसे मलमास कहते हैं। धार्मिक मान्‍यताओं में कहा गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवी देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्‍वयं श्रीहरि से उन्‍हें स्‍वीकार करने का निवेदन किया था। तब श्रीहर‍ि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्‍तम मास। तब से इस महीने को पुरुषोत्‍तम मास भी कहा जाने लगा है। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्‍व माना गया है। साथ ही दान पुण्‍य करने से मोक्ष की प्राप्ति की मान्यता भी हैं।यह मास सभी मासों का स्वामी है। यह संसार में पूज्य व नमस्कार करने योग्य है। इस मास को पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करता है। यह  मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजता है, वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय परमात्मा को प्राप्त होता है।
सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य है। इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होता है। लेकिन जो इस मलमास का तिरस्कार करते है और जो धर्म का आचरण नहीं करते, वे सदैव नरकगामी हो जाते है। 
इस मास में केवल ईश्वर के निमित्त व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है। भागवत पुराण के अनुसार इस मास किए गए सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण, राधा कृष्ण की पूजा और तीर्थ स्थलों पर स्नान और दान का महत्व है।
इस दिन 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र या गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का नियमित जप करना चाहिए। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से सभी मनोरथ पूरे होते हैं।

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