नई दिल्ली. 47 साल के राहुल गांधी की कांग्रेस में ताजपोशी तय हो गई है। वह पार्टी के अगले प्रेसिडेंट होंगे। उन्होंने सोमवार को नामिनेशन भरा। राहुल के अलावा किसी ने घोषित तौर पर पर्चा नहीं भरा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए कांग्रेस में 7 साल बाद चुनाव हो रहा है। राहुल अध्यक्ष पद संभालने वाले नेहरू-गांधी परिवार के छठे और कांग्रेस के 60वें सदस्य होंगे। वह अपनी मां सोनिया गांधी की जगह लेंगे। राहुल सबसे मुश्किल दौर में पार्टी प्रेसिडेंट बन रहे हैं। इस वक्त देश के महज 10% हिस्से में कांग्रेस का शासन रह गया है। बता दें कि 11 दिसंबर को 3 बजे नाम वापस लेने की समयसीमा खत्म होने के बाद उनके निर्विरोध चुनाव की घोषणा की जाएगी।
नेहरू के वक्त 90% हिस्से पर काबिज थी कांग्रेस
- 1951 यानी जवाहरलाल नेहरू के वक्त देश के 90% हिस्से पर कांग्रेस का शासन था। तब कांग्रेस के पास लोकसभा की 489 में से 364 (74%) सीटें थीं।
- 1969 में इंदिरा गांधी के वक्त भी देश के 90% हिस्से पर कांग्रेस का शासन था। तब कांग्रेस के पास लोकसभा की 494 में से 371 (75%) सीटें थीं।
- 1985 में राजीव गांधी के पीएम बनने के बाद कांग्रेस का देश के 67% हिस्से पर शासन था। उस वक्त कांग्रेस के पास लोकसभा की 542 में से 415 (77%) सीटें थीं।
- 1998 में सोनिया गांधी के पार्टी प्रेसिडेंट पोस्ट संभालने के वक्त कांग्रेस का देश के 19% इलाके पर शासन था। कांग्रेस के पास लोकसभा की 543 में से 141 (28%) सीटें थीं।
- अब जब राहुल कांग्रेस के प्रेसिडेंट बनने जा रहे हैं, तब कांग्रेस के पास लोकसभा में 543 में से सिर्फ 46 (8%) सीटें हैं।
सोनिया 19 साल से प्रेसिडेंट
- 132 साल पुरानी कांग्रेस में सोनिया सबसे ज्यादा 19 साल से अध्यक्ष हैं। लेकिन राहुल गांधी परिवार में सबसे ज्यादा वक्त तक सांसद रहने के बाद पार्टी अध्यक्ष बनेंगे।
- इससे पहले इंदिरा गांधी 1959 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई थीं, पर सांसद पहली बार 1967 में चुनीं गईं।
- राजीव गांधी 1981 में सांसद बने और अध्यक्ष 1985 में चुने गए। सोनिया 1998 में अध्यक्ष बनीं, सांसद पहली बार 1999 में चुनी गईं।
2004 में पहली बार सांसद बने थे राहुल
- राहुल गांधी 2004 में पहली बार अमेठी से सांसद चुने गए। 2007 में पहली बार कांग्रेस के संगठन में शामिल हुए थे। 24 सितंबर को उन्हें महासचिव चुना गया। वह 2009 के लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक थे। राहुल ने देश भर में 125 से ज्यादा रैलियां कीं। यह संख्या सोनिया गांधी की रैलियों से भी ज्यादा थीं। - उन्होंने कांग्रेस को 2004 के लोकसभा चुनाव से ज्यादा सीटें दिलाईं। कांग्रेस को 206 सीटें मिलीं। इस जीत का श्रेय भी पार्टी ने राहुल गांधी को ही दिया। कई बड़े नेताओं ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने के लिए कहा, पर राहुल ने संगठन में रहने की बात करते हुए मना कर दिया।
- पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने करीब 6 बार राहुल से कैबिनेट में शामिल होने को कहा, लेकिन राहुल ने हर बार इनकार कर दिया।
- जनवरी, 2013 में राहुल को कांग्रेस उपाध्यक्ष चुना गया। इस चुनाव के बाद 29 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें से कांग्रेस की सिर्फ 5 राज्यों में सरकार बनी। मिजोरम, मेघालय, पुडुचेरी, पंजाब, कर्नाटक में कांग्रेस को जीत मिली है। बिहार और अरुणाचल प्रदेश में भी गठबंधन सरकार बनाई। हालांकि बाद में वह सरकार से बाहर हो गईं। वहीं, 22 राज्यों में कांग्रेस को हार मिली।
3 साल से राहुल कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि बदलने में लगे हुए हैं
- राहुल 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस की हिन्दू विरोधी छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं। वह कांग्रेस से मुस्लिम तुष्टिकरण और बहुसंख्यकों की उपेक्षा का लेबल हटाने में जुटे हैं।
- राहुल का मानना है कि इससे कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ। वह इंदिरा और राजीव के दौर की कांग्रेस बनाना चाह रहे हैं।
- राहुल ने शुरुआत 2014 में उत्तराखंड से की थी, जब वह केदारनाथ के दर्शन के लिए पहुंचे थे। इसके बाद से वह जिस राज्य में चुनावी रैली करते हैं, मंदिरों में पूजा जरूर करते हैं।
- राहुल गुजरात में अब तक 23 बार मंदिर जा चुके हैं। वह खुद को शिवभक्त, जनेऊधारी ब्राह्मण भी बता चुके हैं। वह गुजरात में जय सरदार, जय भवानी का नारा भी लगा चुके हैं।
- 5 साल तक राहुल ने किसानों के साथ कभी फावड़ा चलाया तो कभी दलित के घर जाकर रोटी खाई।
- राहुल ने कई बार एंग्री-एंग मैन की छवि में भी दिखे हैं। 2013 में मंत्री अजय माकन की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में जाकर उन्होंने दागी नेताओं से जुड़ा अध्यादेश फाड़कर फेंक दिया था। उसे बकवास बताया था।
राहुल से पहले दो वाइस प्रेसिडेंट रहे, पर वे कभी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बन सके
- राहुल से पहले 1986 में अर्जुन सिंह, 1997 में जितेंद्र प्रसाद उपाध्यक्ष रहे थे, पर अध्यक्ष नहीं बने।
- 1998 में सोनिया गांधी के खिलाफ यूपी से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितेंद्र प्रसाद ने नामांकन भरा था, लेकिन वह चुनाव हार गए थे।
सोनिया की कामयाबी: 2 बार केंद्र और 26 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनवाई
- 19 साल पहले अप्रैल 1998 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली, तब भी पार्टी की सियासी हालत कमजोर थी।
- मई 1991 में राजीव की हत्या के बाद वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी, परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया। कभी भी राजनीति में नहीं आने की कसम खाई थी।
- इसके बाद 1996 में नरसिंह राव की सरकार जाने के बाद पार्टी की चिंता और बढ़ गई। इस चुनाव में कांग्रेस को 140 सीटें मिली।
- कांग्रेस की हालत दिन-ब-दिन बुरी होती देख सोनिया 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। उनके कार्यकाल में 2004 और 2009 में कांग्रेस की सरकार बनी। महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तराखंड, गोवा, असम, केरल, पंजाब, हिमाचल समेत 26 सूबों में पार्टी ने सरकार बनाई।
- दो बार केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी। हालांकि 2014 में कांग्रेस ने पिछले 70 साल में सबसे खराब प्रदर्शन किया। कांग्रेस दो अंकों में सिमट गई। कांग्रेस का 7 राज्यों में खाता तक नहीं खुल सका। 44 सीटें मिलीं।
इस चुनाव से क्या होगा?
2019 लोकसभा और 12 राज्यों में चुनाव की तैयारी
- कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल को पीएम कैंडिडेट के तौर पर उतार सकती है। पार्टी राहुल को अध्यक्ष बनाकर संगठन और कार्यकर्ताओं में जोश भरना भी चाह रही है।
- 2019 अाम चुनाव से पहले 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में कांग्रेस राहुल के जरिए तैयारी करना चाह रही है।
- सोनिया गांधी कुछ समय से अस्वस्थ हैं। कांग्रेस राहुल के जरिए राज्य इकाइयों को मजबूत करना चाह रही है।
क्या बदलेगा: संगठन, टीम राहुल, वर्किंग कमेटी
राहुल के आने से कांग्रेस में कई बदलाव हो सकते हंै। राहुल लंबे समय से नई टीम बनाने में लगे हुए हैं। कई पुराने नेता इसका विरोध भी कर चुके हैं। अध्यक्ष बनने के बाद राहुल सारे फैसले खुद ले सकेंगे। वह कांग्रेस कार्यसमिति में भी फेरबदल कर सकते हैं।
19 साल में बीजेपी में 8 अध्यक्ष चुने गए
- सोनिया गांधी 1998 से कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। इस दौरान बीजेपी में आठ अध्यक्ष बन चुके हैं।
- कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, के. जना कृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और अमित शाह शामिल हैं।
- बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष वही व्यक्ति हो सकता है जो कम से कम 15 साल तक सदस्य रहा हो। चुनाव में राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं।
इस तरह होता है कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव
- अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सबसे पहले एक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त होता है।
- प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावक बन सकते हैं।
- प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 10 सदस्यों का समर्थन हासिल करने वाला कोई भी सदस्य यह चुनाव लड़ सकता है। सात दिन में अपना नाम वापस लेना होता है। - फिर रिटर्निंग अधिकारी उन नामों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पास भेजते हैं। इसके बाद दो से अधिक उम्मीदवार होने पर चुनाव होता है।
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