नेवी को 17 साल बाद मिली स्कार्पीन पनडुब्बी, मोदी बोले- बढ़ेगा देश का दम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंबई के तेह डाकयार्ड पहुंच गए हैं. थोड़ी देर में वे स्कार्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस कलवरी को राष्ट्र को समर्पित करेंगे.

 इससे पहले प्रधानमंत्री रात करीब 11 बजे मुंबई पहुंचे और राजभवन गए, जहां उन्होंने रात बिताई. मुंबई हवाईअड्डे पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने प्रधानमंत्री की अगवानी की.

आईएनएस कलवरी एक डीजल-इलेक्ट्रिक युद्धक पनडुब्बी है, जिसे भारतीय नौसेना के लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने बनाया है. यह स्कॉर्पीन श्रेणी की उन 6 पनडुब्बियों में से पहली पनडुब्बी है, जिसे भारतीय नौसेना में शामिल किया जाना है. यह मेक इन इंडिया पहल की कामयाबी को दर्शाता है. इस परियोजना को फ्रांस के सहयोग से चलाया जा रहा है.

फ्रांस की रक्षा एवं उर्जा कंपनी डीसीएनएस द्वारा डिजाइन की गयी पनडुब्बियां भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट-75 के तहत बनायी जा रही हैं.

टाइगर शार्क के नाम रखा गया कलवरी नाम

कलवरी का नाम हिंद महासागर में पाई जाने वाली खतरनाक टाइगर शार्क के नाम रखा गया है. नौसेना की परंपरा के मुताबिक शिप और सबमरीन के सेवामुक्त होने पर उन्हें दोबारा अवतरित किया जाता है. वैसा ही कलवरी के साथ भी हुआ.

ये साल भारतीय सबमरीन ऑपरेशंस के पचासवें साल को गोल्डेन जुबली के तौर पर मनाया जा रहा है. इसके लिए फ्रांस की डीसीएनएस और एमडीएल के बीच अक्टूबर 2005 में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए समझौता हुआ था.

पहली कलवरी 8 दिसंबर 1967 में भारतीय नौसेना में शामिल हुई थी और यह भारत की पहली सबमरीन भी थी. इसे 31 मार्च 1996 को 30 साल की राष्ट्रसेवा के बाद भारतीय नौसेना से रिटायर किया गया.

एक सच्ची नॉटिकल परंपरा के मुताबिक कलवरी का फिर से अवतरण होगा. स्कार्पीन सबमरीन एक बार फिर से समुद्र की गहराई में राष्ट्र के नौसैनिक हितों की रक्षा के लिए कुलांचे भरेगी.

कितनी ताकतवर है स्कार्पीन सबमरीन कलवरी

- सबमरीन कलवरी में स्टेट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है.

- कलवरी एडवांस्ड साइलेंसिग टेक्निक से लैस है.

- शोर और ध्वनि को कम रखने के लिए सबमरीन में रेडिएटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है.

- कलवरी को हाइड्रो-डॉयनामिकली ऑप्टिमाइज्ड शेप दिया गया है.

- ये सबमरीन दुश्मनों पर अपने घातक हथियारों से हमला करने में सक्षम है.

- कलवरी टारपीडो और ट्यूब तरीके से एंटी-शिप मिसाइल का इस्तेमाल कर सकती है.

नौसैनिक टास्कफोर्स के साथ मिलकर काम कर सकती है कलवरी

स्कार्पीन सबमरीन को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह कई तरह के अभियानों में हिस्सा ले सकती है. जैसे एंटी सरफेस वॉर, एंटी सबमरीन वॉर, इंटेलिजेंस इकट्ठा करना, माइंस बिछाना और एरिया सर्विलांस जैसे काम हैं. कलवरी सभी तरह के थियेटर में काम कर सकती है. इसका मतलब ये है कि नौसैनिक टास्क फोर्स के साथ मिलकर भी यह काम कर सकती है.

कलवरी के निर्माण के साथ एमडीएल ने सबमरीन के कॉम्लेक्स ऑर्ट में अपनी महारत साबित कर दी है. भारत अब सबमरीन बनाने वाले देशों में अपनी जगह मजबूत कर चुका है. एमडीएल ने दूसरी स्कार्पीन खांदेरी बनाई थी और इसे जनवरी 2017 में लॉन्च किया गया था. खांदेरी का अभी समुद्र में ट्रायल चल रहा है.

एक तीसरी स्कार्पीन करंज को इसी साल के आखिर में लॉन्च किया जाएगा. हालांकि डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के प्रोत्साहन और सहयोग के बिना स्कार्पीन प्रोजेक्ट का इतनी सफलता हासिल कर पाना आसान नहीं था. यह याद रखे जानी वाली बात है कि एमडीएल की बनाई दो एसएसके सबमरीन राष्ट्रसेवा में लगी हुई हैं.

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