गुजरात ने SC से कहा, निजी सूचना निजता के अधिकार के दायरे में नहीं ...

नई दिल्ली। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पारदर्शिता आज के तकनीकी युग का एक प्रमुख अंग है और बुनियादी निजी सूचना प्रदान करने को निजता के अधिकार के दायरे में नहीं लाया जा सकता है। प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता में नौ जजों की संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे से निबट रही है कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत बुनियादी अधिकार करार दिया जा सकता है। 

गुजरात सरकार की तरफ से पेश राकेश द्विवेदी ने कहा कि निजता के कुछ पहलुओं को विभिन्न बुनियादी अधिकारों में खोजा जा सकता है लेकिन प्राधिकारियों को बुनियादी निजी सूचना प्रदान करना मौजूदा तकनीकी युग में ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी है। इसके बाद द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट के नियमों का जिक्रकिया जिसने किसी निजी हित याचिका दायर करने के लिए विभिन्न निजी सूचना प्रदान करना अनिवार्य कर दिया है। उन्होंने कहा, आप नियमावली के तहत विभिन्न निजी सूचनाएं मांग कर तकनीक के साथ आगे बढ़ रहे हैं। 

द्विवेदी ने इसके बाद इस तथ्य का जिक्र किया कि सुप्रीम कोर्ट पीआईएल दायर करने की इजाजत देने के लिए नाम, पता, टेलीफोन नंबर, पेशा और राष्ट्रीय अनूठा पहचान कार्ड जैसी निजी सूचना मांग रहा है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी सूचना का उपयोग सिर्फ अभिष्ट उद्देश्य से किया जाना चाहिए। इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह आधार को खत्म नहीं करने जा रही है। 

महाराष्ट्र सरकार ने दलील दी कि अदालतें निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं कर सकती है, सिर्फ संसद ही ऐसा कर सकती है। निजता के अधिकार विधायी अधिकार हैं, ये मौलिक अधिकार नहीं हैं। संसद चाहे तो संविधान में इसके लिए बदलाव कर सकती है। निजता को अन्य विधायी कानून के तहत संरक्षित किया गया है।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने ये दलीलें पेश की थी। वहीं, यूआईडीएआई की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आधार में जो डाटा लिया गया है उसका इस्तेमाल कर अगर सरकार सर्विलांस भी करना चाहे तो असंभव है, आधार ऐक्ट कहता है डेटा पूरी तरह से सुरक्षित है।

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