कहीं आपके बच्चें 'ब्लू व्हेल' खेल के शिकार तो नहीं, इस खेल से अबतक 250 लोगों ने गंवाई अपनी जान

'ब्लू व्हेल' गेम के खतरनाक कदम अब भारत में भी फैलने लगे है। सोमवार को मुंबई में नवीं कक्षा में पढ़ने वाले 14 साल के मनप्रीत ने इस खूनी खेल के चंगुल में फंसकर सातवीं मंज़िल के इमारत से कूदकर अपनी जान दे दी है। इस घटना का संबंध ऑनलाइन गेम 'ब्लू व्हेल' सुसाइड चैलेंज बताया जा रहा है।
क्या है ब्लू व्हेल गेम/ 'ब्लू व्हेल' सुसाइड चैलेंज
इस खेल को 'द ब्लू व्हेल गेम या 'द ब्लू व्हेल चैलेंज' खेल के नाम से भी जाना जाता है। इस खेल को एक सोशल मीडिया ग्रुप चला रहा है और इस समूह का प्रशासक 50 दिनों तक रोज समय के हिसाब से दैनिक कार्यों को तय करता है जिन्हें खेलने वाले को पूरा करना होता है। इनमें से कुछ कार्य खुद को काटना या डरावनी फिल्में देखना या गलत समय पर नींद से जागना होते हैं। इस खेल में हर एक टास्क के बाद खेलने वाले को अपने हाथों पर एक कट लगाने के लिए कहा जाता है जिसके बाद अंत व्हेल मछली की आकृति उभरती है। गेम की शुरूआत होने के बाद दिन प्रतिदिन इस गेम के कार्य कठिन होते जाते हैं। इस गेम के आखिरी 50वें दिन गेम चलाने वाले खेलने वालों को आत्महत्या करने का निर्देश देते हैं। 

कहाँ से हुई इस खेल की शुरुआत
ऑनलाइन गेम 'ब्लू व्हेल' साल 2013 रूस में शुरू हुआ था और इस खेल के निर्माता फिलिप बुडेकिन ने किया था। इस गेम से ख़ुदकुशी के मामले सामने आने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है।
बच्चों के अभिवावक क्या करें
  • बच्चों को इंटरनेट से दूर रखने की जगह उन्हें हर कदम पर गाइड करते रहे।
  • सोशल मीडिया में भागीदारी करें।
  • बच्चों के व्यवहार में थोड़ा भी बदलाव लगे तो सर्तक रहें।
मनोवैज्ञानिकों का क्या है कहना
देखा जा रहा है की आजकल ऑनलाइन खेलों में लगातार बच्चों की रूचि बढ़ती जा रही है। अब बच्चें पार्कों में कम और मोबाइल में अधिक समय व्यतीत करने लगे है। माता-पिता बच्चों को समय देने की जगह उन्हें मोबाइल फ़ोन का तोहफा देकर उन्हें इसकी लत लगा रहे है। ऐसे में अभिवावकों को अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताने के साथ ही उनका दोस्त भी बनना होगा। क्योंकि कई डॉक्टरों का कहना है की इस तरह के खतरनाक गेम अकेलेपन के शिकार लोग ही अधिक खेलते है। वही किसी भी गेम का इतना लत हो जाना इंटनेट गेम्स डिसऑर्डर का भी लक्षण होता है और यह उन बच्चों में अधिक होता है जो अकेले रहते है। ऐसे लोग खुश भी बहुत जल्दी होते है और उदास भी उनका अपने पर नियंत्रण नहीं होता है।
वहीं दूसरी और खेल के आभासी दुनिया को बच्चे बहुत जल्दी उसे सच मानने लगते है और उसी में अपनी दुनिया खोजने लगते है। उन्हें लगता है वो इस खेल को जीत कर एक मुकाम हासिल कर के हीरो की तरह छा जायेंगे। इसलिए बच्चों के माता-पिता को इस भागदौड़ भरे जीवन में अपने बच्चों के लिए समय निकालना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें अवसाद से मात्र उनका प्यार भरा स्पर्श ही निकाल सकता है।
बच्चों में थोड़ा भी बदलाव होने पर उनसे खुलकर प्यार से बात करना होगा तभी बच्चों को ऑनलाइन के खतरनाक खेलों से बचाया जा सकता है।

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