इस शख्स की एक आवाज पर मध्य प्रदेश में एकजुट हुए हजारों किसान, नाम है कक्का जी!

20 दिसंबर 2010 तक शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का जी आम लोगों के लिए कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं था. कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा एक ऐसा शख्स, जो गुमनामी में रहकर किसानों और उनके सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ रहे थे.

दिसंबर 2010 की कड़कड़ाती ठंड में साढ़े छह साल पहले कक्काजी के नेतृत्व में हजारों किसानों ने अचानक राजधानी भोपाल में डेरा जमा दिया. भोपाल की सड़कों को चारों तरफ से सील कर दिया गया. हर प्रमुख चौराहों पर केवल किसान ही किसान नजर आ रहे थे.

किसानों ने अपने ट्रैक्टर-ट्रालियों से घेर लिया था. मुख्यमंत्री निवास से लेकर शहर के सभी प्रमुख रास्तों को किसानों ने जाम कर दिया था. किसानों ने सड़कों पर कब्जा डेरा जमा लिया था और खाना पकाना तक शुरू कर दिया था.
राजधानी को 'बंधक' बनाने के इस आंदोलन ने हर किसी की जुबां पर शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्काजी का नाम ला दिया. इसी आंदोलन ने कक्का जी को नयी पहचान दी.

कक्का जी उस वक्त आरएसएस से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ की मध्य प्रांत इकाई के अध्यक्ष का ओहदा संभाले हुए थे. इस आंदोलन के बाद से ही कक्का जी शिवराज सरकार के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं.
शिवराज सरकार को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करने वाले शिवकुमार शर्मा कक्का जी एक बार फिर शिवराज के लिए बड़ी परेशानी बन गए हैं.

मध्यप्रदेश में एक जून से शुरू हुए किसान आंदोलन का नेतृत्व कक्का जी ही कर रहे हैं. किसानों की अगुवाई कर रहे है कक्का जी का एक ही नारा है, 'खुशहाली के दो आयाम, ऋण मुक्ति और पूरा दाम.'

दो महीने तक जेल, 12 मुकदमे दर्ज

रायसेन जिले के बरेली में बारदाने की मांग को लेकर किसान 21 दिनों से आंदोलन कर रहे थे. 7 मई 2012 को किसानों के आंदोलन में हिंसा भड़की, तो पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी, जिसमें हरि सिंह प्रजापति नाम के किसान की मौत हो गई.

पुलिस ने कक्काजी को गिरफ्तार कर लिया. करीब दो महीने तक कक्का जी जेल में रहे. अभी भी उन पर 12 मुकदमे दर्ज है.

छात्र राजनीति में शरद यादव से जुड़े, आपातकाल में जेल गए

शिवकुमार शर्मा का जन्म 28 मई 1952 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में हुआ था. जिले के ग्राम मछेरा खुर्द में किसान परिवार में जन्में कक्का जी की तालीम जबलपुर में हुई.

-जबलपुर में पढ़ाई के दौरान के वह छात्र राजनीति से भी जुड़े रहे.
-जबलपुर यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति में शरद यादव के साथ जुडे रहे.
-छात्र राजनीति के बाद जेपी आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. आपातकाल के दौरान मुखर होने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.
उन्होंने 1981 में मध्य प्रदेश सरकार की विधि बोर्ड में सलाहकार के रूप में काम किया.
आदिवासियों की ज़मीन मुक्त करवाने के दौरान वह कई रसूखदारों के निशाने पर आ गए जिसके बाद उनका ट्रांसफर भोपाल कर दिया गया. कुछ समय नौकरी करने के बाद वे किसान आंदोलन में कूद पड़े. वे भारतीय किसान संघ में महामंत्री और बाद में अध्यक्ष रहे.

बस्तर से तबादला

कक्का जी 1981 में मध्य प्रदेश सरकार से जुड़े. उन्हें राज्य सरकार ने विधि बोर्ड में सलाहकार नियुक्त किया. बताते हैं कि बस्तर में वह आदिवासियों के हक में खड़े हुए थे. अविभाजित मध्यप्रदेश के बस्तर में केंद्र सरकार के कानून 70 (ख) के तहत आदिवासियों की जमीन मुक्त करवाने की कवायद में वह कई लोगों की आंखों की किरकिरी बन गए थे, जिसके बाद उनका भोपाल तबादला कर दिया गया.

भोपाल पहुंच किसान आंदोलन से जुड़े

राजधानी भोपाल पहुंचने के बाद कक्का जी का मन ज्यादा दिन तक नौकरी में नहीं लगा. वह नौकरी छोड़ किसान आंदोलन से जुड़ गए. वे भारतीय किसान संघ में पहले महामंत्री और बाद में अध्यक्ष रहे.

भाजपा के दबाव में संघ से हटाया..!

राजधानी भोपाल में 2010 में हुए आंदोलन के बाद वे भाजपा नेताओं को भी खटकने लगे थे. कभी मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले कक्का जी को भारतीय किसान संघ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उन्होंने किसानों के लिए भारतीय किसान मजदूर संघ के नाम से नया संगठन बनाया. मध्यप्रदेश में एक जून से शुरू हुए किसान आंदोलन में उनके इसी संगठन की अहम भूमिका है.

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