बर्थडे स्पेशल: बॉलीवुड के सबसे खौफनाक विलेन थे अमरीश पुरी

लंबा चौड़ा कद, खतरानाक आवाज और दमदार शख़्सियत के जरिए सालों तक फिल्म प्रेमियों के दिल में खौफ पैदा करने वाले अभिनेता थे अमरीश पुरी. आज हम आपको बताने जा रहे है उनकी कुछ बेहतरीन फिल्मों के बारे में...


1985 वो दौर था जब अमरीश पुरी फिल्म इंडस्ट्री में स्थपित हो रहे थे. तभी सुभाष घई की फिल्म आई 'मेरी जंग'. फिल्म में नूतन सरीखे दिग्गज कलाकारों के बीच भी अमरीश पुरी ने अपनी जगह बनाई. अमरीश का जीडी ठकराल का किरदार दर्शकों को इतना पसंद आया कि उन्हें इस साल का फिल्म फेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड भी दिया गया.


साल 1987 अमरीश पुरी के लिए बहुत यादगार था. इसी साल उनकी एक और फिल्म आई 'मि. इंडिया'. फिल्म में अमरीश एक खतरनाक विलेन मोगैंबो की भूमिका में थे. मोगैंबो की इतनी दहशत थी कि उसके एक इशारे पर उसके सिपाही भयानक खौलते तेल में कूद जाते हैं. 'मि. इंडिया' की कहानी कुछ ऐसी थी कि इस फिल्म में हीरो के पास एक ऐसा बैंड होता है जिसे पहनने से वो गायब हो जाता है. 'मिं. इंडिया' का मोगैंबो खलनायकों की दुनिया में एक अमर किरदार बन गया. उनका डायलॉग ''मोगैंबो खुश हुआ'' तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के जुबान पर चढ़ गया.


तहलका एक ऐसी फिल्म थी जिसके लिए अगर कहा जाए इसे सिर्फ अमरीश पुरी के डायलॉग के लिए याद किया जाता है तो गलत नहीं होगा. फिल्म में अमरीश का नाम था डॉन्ग और सारी लड़ाई उनके आइलैंड डॉन्ग-रीला में लड़ी जाती थी. 1992 की इस फिल्म में अमरीश के साथ धर्मेंद्र, जावेद जाफरी, आदित्य पंचोली मुख्य किरदार में थे. तहलका में अमरीश पुरी का एक डायलॉग था "डॉन्ग कभी नहीं होता रॉन्ग" जो हमेशा याद रहने वाला है.


1993 को में रिलीज हुई राजकुमार संतोषी की फिल्म 'दामिनी' एक बड़ी हिट साबित हुई. फिल्म में जहां सनी देओल के डायलॉग आज भी बच्चे-बच्चे के जुबान पर हैं तो वहीं अमरीश पुरी के रोल को कौन भूल सकता है. फिल्म में अमरीश पुरी का बैरिस्टर इंदरजीत चड्ढा के किरदार ने 'दामिनी' को फिल्मी इतिहास में अमर कर दिया


1995 में आदित्य चोपड़ा की 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगे' में अमरीश पुरी ने एक ऐसे बाप का किरदार निभाया था जिसे पैसा कमाने के लिए परदेश जाना पड़ता है. इतने साल विदेश में रहने के बावजूद वो अपने देश की मिट्टी की खुशबू को नहीं भूलता. फिल्म में अमरीश पुरी के कड़क बाप वाले रोल को दर्शकों ने इतना पसंद किया कि फिल्म फेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के तैर पर उनका नॉमिनेशन भी हुआ था.


1995 में राकेश रौशन की फिल्म 'कोयला' में अमरीश पुरी( राजा साहब) फिर एक बार खलनायक की भूमिका में थे, पर ये खलनायक थोड़ा अलग था. राजा साहब को फिल्म की हीरोइन माधुरी से प्यार हो जाता है. फिल्म में अमरीश एक मॉडर्न खलनायक बने थे. इस फिल्म को जो एक मात्र अवॉर्ड मिला था वो भी अमरीश पुरी को बेस्ट परफॉर्मेंस इन निगेटीव रोल के लिए था.


1997 में आई प्रियदर्शन की 'विरासत' में अमरीश पुरी ने बाकी फिल्मों में खलनायक के रोल से हटकर किरदार निभाया. कहानी कुछ ऐसी थी कि राजा ठाकुर बने अमरीश पुरी की एक ही तमन्ना है कि उनका गांव तरक्की करे. अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्हें अपनी जान भी देनी पड़ती है. उनके इस पॉजिटिव रोल के चलते ही उन्हें साल 1998 को फिल्म फेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड से नवाजा गया था.


1997 में ही शाहरुख खान और महिमा चौधरी की एक फिल्म आई 'परदेश' जिसे सुभाष घई ने डायरेक्टर किया था. यह आमरीश पुरी की सभी फिल्मों में से एक प्रमुख फिल्म है. परदेश में अमरीश पर फिल्माया गया गाना ये 'दुनिया एक दुल्हन' आजतक याद किया जाता है. फिल्म में अमरीश पुरी एक अमीर बिजनेस मैन किशोरीलाल के किरदार में थे जो रहता तो विदेश में है पर उसे बहू हिंदोस्तानी चाहिए.


21 सदी के शुरुआत में वैसे तो अमरीश पुरी एक स्थापित खलनायक बन चुके थे पर तभी साल 2001 में डायरेक्टर अनिल शर्मा की एक फिल्म आई 'गदर'. अपने नाम की तरह ही इस फिल्म ने पर्दे पर गदर मचा दिया. फिल्म में अमरीश पुरी (अशर्फ अली) का किरदार एक ऐसे बाप का था जिसकी बेटी भारत-पाक बटवारे के समय भारत में छूट जाती है. बहुत साल बाद जब अशर्फ अली को पता चलता है कि उसकी बेटी जिंदा है और एक सिख से शादी के बाद उसका एक बेटा भी है तो एक बेरहम बाप की तरह अमरीश पूरी कोशिश करते हैं अपने बेटी को उसके पति और बच्चे से दूर रखने की. गदर में अपने रोल के लिए अमरीश पुरी को फिल्म फेयर और जी सिने अवॉर्ड के बेस्ट विलेन के कैटिगरी में नॉमिनेट किया गया था.

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