नई दिल्ली। पानी की गंदगी और कचरे को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी स्थानीय निकाय और राज्य सरकारों को आदेश दे दिया है कि वे 6 महीने के अंदर औद्दोगिक ईकाईयों में इफ्युलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (कचरा शोधन संयंत्र) लगाएं। अगर वे ऐसा करने में असफल होते हैं तो उनकी पावर सप्लाई को रोक दिया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि औद्योगिक इकाइयों में कचरा शोधन इकाइयां सही तरीके से काम नहीं कर रही हैं तो अब उन्हें और काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) को आदेश दिया कि वह सभी औद्योगिक ईकाईयों को नोटिस जारी कर आगाह कर दे। बेंच में शामिल न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और एस कश्मीर कौल ने कहा 3 महीने की नोटिस के अवधि के बाद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) सभी औद्दोगिक ईकाइयों का निरीक्षण करे और उनकी स्थिति को को भांपे।
न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) को आदेश दिया कि वह सभी औद्योगिक ईकाईयों को नोटिस जारी कर आगाह कर दे। बेंच में शामिल न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और एस कश्मीर कौल ने कहा 3 महीने की नोटिस के अवधि के बाद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) सभी औद्दोगिक ईकाइयों का निरीक्षण करे और उनकी स्थिति को को भांपे।
कोर्ट ने कहा कि अगर औद्योगिक ईकाइयां इस आदेश का पालन नहीं करती हैं तो उसे और अधिक कार्य करने की अनुमति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला औद्दोगिक क्षेत्रों में बढ़ रहे प्रदूषण को देखते हुए लिया। औद्दोगिक ईकाइयों से निकलने वाला दूषित पानी लोगों को बीमार कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से कचरा शोधन प्लांट की स्थापना के लिए 3 वर्ष का समय दिया है और संबंधित एनजीटी बेंच को उनकी स्थिति के बारे में अवगत कराने का आदेश दिया है।
Tags
Country