Covid-19 Lockdown Impact: कोरोना वायरस महामारी से पैदा हुई भयावह स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने बड़ी संख्या में कैदियों की आपातकालीन रिहाई की अनुमति दी थी. मगर इससे संबंधित एक रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात सामने आई है. इसमें बताया गया कि आपातकालीन पैरोल (Emergency Parole) के पात्र होने के बावजूद कई कैदियों ने आवेदन करने से इनकार कर दिया. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कई कैदी कहते हैं कि वो कोविड-19 लॉकडाउन (Covid-19 Lockdown/Unlock) के चलते बाहर जिंदा कैसे रहेंगे. कुछ ने कहा कि वो ऐसे मुश्किल समय में उल्टे अपने परिवार पर बोझ बन जाएंगे. कुछ कैदी जेल के अपने समय को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते हैं.
रिपोर्ट में बताया गया कि महाराष्ट्र में कम से कम 26 कैदियों ने आपातकालीन पैरोल लेने से इनकार कर दिया, जबकि वो इसके पात्र थे. उन्होंने अस्थाई रूप से अपनी रिहाई पर कोई रुचि नहीं दिखाई. रिपोर्ट में कोविड-19 (Coronavirus) के दौरान जेलों में भीड़ कम करने के कदमों की सिफारिश करने के लिए गठित एक राज्य समिति की मई में हुई बैठक के हवाले से जानकारी दी गई है.
पिछले महीने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक फैसले में कहा कि किसी भी कैदी को उसकी इच्छा के बिना अस्थाई जमानत या आपातकालीन पैरोल पर रिहाई के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. एक जेल प्रमुख ने द इंडिय एक्सप्रेस को बताया- कुछ रिहाई के पात्र कैदियों ने हमें बताया कि वो लॉकडाउन के दौरान नौकरी या आजीविका के लिए कोई दूसरा काम खोजने के लिए भयभीत महसूस करते हैं.
उदाहरण के लिए ओडिशा निवासी और मुंबई की जेल में सजा के आखिरी पांच साल काट रहे तीस वर्षीय एक दोषी ने अधिकारियों से कहा कि उसे अपने परिवार पर बोझ बनने का डर है. जेल अधिकारी के मुताबिक- उसने हमसे कहा कि वो जेल में ही अपने काम के बदले में मजदूरी लेता रहेगा.
इसी तरह कुछ महीने पहले आपातकालीन पैरोल पर रिहा हुए एक विचारधीन कैदी ने पिछले महीने पश्चिमी महाराष्ट्र में आत्मसमर्पण कर दिया. विदर्भ और महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों में कैदियों के साथ करने वाली संस्था Varhad के संस्थापक और अध्यक्ष रवींद्र वैद्य ने बताया- आत्मसमर्पण करने के बाद उसने हमसे अपनी मां की वित्तीय मदद के लिए कहा.
