पूर्व मुख्यमंत्रियों को नि:शुल्क सरकारी आवास देने पर कैबिनेट में होगा फैसला

भोपाल। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन नि:शुल्क सरकारी आवास की पात्रता पर कैबिनेट में फैसला होगा। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के सुनाए फैसले के मद्देनजर सरकार नियमों में संशोधन कर सकती है।
इसका प्रस्ताव भी सामान्य प्रशासन विभाग कैबिनेट में रख चुका है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को सशुल्क आवास देने का प्रावधान रखा गया है। वहीं, आवास खाली कराने को लेकर कोई भी निर्णय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद लिया जाएगा।
प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकार ने आजीवन नि:शुल्क सरकारी आवास में रहने की पात्रता दी है। अधिकारियों का कहना है कि हाईकोर्ट में सरकारी आवास में अनधिकृत तौर पर रहने वालों को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को दिए गए आवास को लेकर भी सवाल उठाए गए थे।
सरकार ने महाधिवक्ता कार्यालय से इस मामले में राय मांगी तो उत्तरप्रदेश के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए नियम में बदलाव की बात कही गई। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने सशुल्क आवास देने की शर्त जोड़ने का निर्णय करने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा था, लेकिन उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई प्रस्तावित थी, इसलिए कोई निर्णय नहीं लिया गया। विभाग के अपर सचिव केके कातिया ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया है, यह अभी पता नहीं है। आदेश आने के बाद ही अंतिम रूप से कुछ कहा जा सकेगा।
 
इन्हें मिला है सरकारी आवास
पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, दिग्विजय सिंह, उमा भारती और बाबूलाल गौर।
वोरा से खाली करा लिया था आवास
सरकार ने सिर्फ उन्हीं पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन आवास की सुविधा नि:शुल्क उपलब्ध कराने का फैसला किया है जो मध्यप्रदेश के हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा चूंकि छत्तीसगढ़ के गठन के बाद वहां चले गए थे, इसलिए इसी आधार पर उनसे आवास खाली कराया गया है।

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