AADHAAR: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा-आधार ऐक्ट में निजता को संरक्षित करने का प्रावधान

नई दिल्ली 
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच के सामने केंद्र सरकार सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सूचनात्मक निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के लेवल पर नहीं ले जाया जा सकता। संविधान बनाने वाले ने जानबूझकर निजता को मौलिक अधिकार के दायरे से बाहर रखा था। केंद्र ने कहा कि आधार ऐक्ट के तहत निजता को संरक्षित करने का प्रावधान किया गया है और इससे ये भी साफ होता है कि प्रत्येक निजता मौलिक अधिकार नहीं है। केंद्र की ओर से दलीलें पूरी कर ली गई।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की दलील
एमपी शर्मा और खड़ग सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो अलग-अलग फैसले में कहा गया है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। दोनों ही जजमेंट का कुछ पार्ट उन्होंने पढ़कर कोर्ट में सुनाया। कहा कि निजता का अधिकार जूरिस नहीं है ये सामाजिक धारणा है। निजता मौलिक अधिकार नहीं है। अगर इसे स्वतंत्रता के अधिकार से जोड़ कर भी देखा जाए तो भी इसके कई आयाम हैं और प्रत्येक पहलू और आयाम मौलिक अधिकार नहीं हो सकता। अगर निजता के अधिकार का दावा किया गया तो दूसरे के मौलिक अधिकार प्रभावित होने लगेंगे। इस दौरान उन्होंने यूएस जज स्कैलिया और थॉमस का उद्धरण पेश किया।

नौकरी के लिए भी दी जाती है जानकारी
अटॉर्नी जनरल ने नौकरी के लिए भरे जाने वाले फॉर्म का हवाला दिया कि किस तरह से जानकारी वहां दी जाती है। जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने कहा कि जस्टिस स्कैलिया का विचार था कि सरकार के साथ साझा किए जाने वाले सूचनात्मक निजता, निजता के अधिकार के दायरे में नहीं है। लेकिन बहुमत का ये तर्क नहीं था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस आर. एस. नरिमन ने कहा कि यूएस के जो भी ऐतिहासिक फैसले हुए हैं उसमें कहा गया है कि निजता का अधिकार प्रक्रिया का हिस्सा है और संविधान के तहत संरक्षित है। वेणुगोपाल ने कहा कि यूएस जजमेंट सूचनात्मक निजता की बात है और कहा कि यूएस न्याय शास्त्र में काफी आगे है। लेकिन तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लेकिन सूचनात्मक निजता के मामले में यूरोपियन यूनियन से यूएस पीछे है। तब वेणुगोपाल ने कहा कि यूएस में बड़ी संख्या में जजों ने ईयू जजमेंट पर विचार नहीं करते क्योंकि सामाजिक और पर्यावरणीय तौर पर दोनों देश अलग हैं। ऐसे में देश की समाजिक और सांस्कृतिक परिदृष्य निजता के अधिकार के मामले में ज्यादा महत्वपूर्ण है। वेणुगोपाल ने कहा कि अमेरिकी संविधान वैसे अधिकार को संरक्षित करता है जो अमेरिकी राष्ट्रीय इतिहास और संस्कृति से ताल्लुक रखता है। भारत में भी वही स्थिति होनी चाहिए।

सूचनात्मक निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के लेवल पर नहीं लाया जा सकता
वेणुगोपाल ने कहा कि सूचनात्मक निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के लेवल पर नहीं ले जाया जा सकता। संविधान बनाने वाले ने जानबूझकर निजता को मौलिक अधिकार के दायरे से बाहर रखा था। वेणुगोपाल ने फिर दोहराया कि निजता के तमाम पहलुओं व आयामों (जैसे सूचनात्मक निजता) को मौलिक अधिकार नहीं बनाया जा सकता।

जस्टिस चंद्रचूड़ के सवाल
उन्होंने कहा कि हमें इस बात के लिए सिद्धांत तय करना होगा कि किस तरह का डाटा और सूचना होना चाहिए। किस तरह के डाटा को निजता के आधार पर संरक्षित करने की जरूरत है। किस तरह के डाटा के संरक्षण की जरूरत नहीं है। तब वेणुगोपाल ने कहा कि हमें देखना होगा कि राज्य को किस तरह के डाटा चाहिएं इसके लिए राज्य के इंट्रेस्ट (हित) को देखना होगा। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किस तरह का राज्य इंस्ट्रेस्ट की बात है। क्या राज्य का बाध्यकारी इंट्रेस्ट या फिर राज्य के वैध इंट्रेस्ट की बात है। इस मुद्दे को भी तय करना होगा। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि डाटा के मामले में राज्य के वैध हितों पर विचार करना चाहिए। लेकिन जस्टिस जे.चेलामेश्वर इस दलील से सहमत नहीं दिखे। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जनगणना में तो काफी जानकारी बतानी होती है। पासपोर्ट और वोटर रजिस्ट्रेशन के दौरान भी काफी जानकारी पब्लिक में डालनी होती है। लेकिन किसी ने भी जनगणना और वोटर आई कार्ड के लिए दी जाने वाली सूचनाओं के लिए किसी ने आपत्ति नहीं जताई लेकिन आधार में आपत्ति जताई गई है। आधार की वकालत करते हुए कहा कि स्कूलों में फर्जी दाखिले और सीधे अकाउंट में फंड ट्रांसफर करने में होने वाली तमाम अनिमितताओं को इससे काबू किया जा रहा है। जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि लेकिन इन जनगणना में लिए गए आंकड़े को निजी पार्टी द्वारा लिया जाना बेहद मुश्किल है साथ ही ऐक्ट में अपराध भी है। जस्टिस बेबड़े ने तब कहा कि क्या आधार के लिए भी ऐसा प्रावधान है तब अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हां ऐसा ही प्रावधान है और इसके लिए ऐक्ट की धारा-29 में प्रावधान है।

डाटा प्रोटेक्शन के लिए मजबूत तंत्र जरूरीः जस्टिस चंद्रचूड़
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मोबाइल नंबर का क्या प्रोटेक्शन है। क्यों मेडिकल हिस्ट्री को जनसंख्यांकिन डाटा में कवर नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि राज्य को आधार के मामले में डाटा का वैध इंट्रेस्ट हो सकता है। लेकिन लोगों के डाटा के प्रोटेक्शन को सुनिश्चित करने के लिए उसके पास मजबूत तंत्र होना चाहिए। अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आधार ऐक्ट की धारा-29 के तहत जानकारी के बारे में नियामक है। तब सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि लेकिन आधार के पंजीकरण का काम प्राइवेट पार्टी को दिया गया है।

जस्टिस नरिमन ने कहा कि आधार ऐक्ट में निजता के हितों पर विस्तार से चर्चा है। इसका मतलब क्या ये नहीं है कि कानून निजता को मान्यता देता है। अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहते लेकिन साथ ही कहा कि आधार ऐक्ट में डाटा के निजता और गोपनीयता को संरक्षित करता है। इस दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ऐक्ट में निजता को संरक्षित करने का प्रावधान हुआ है ऐसे में साफ है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। वेणुगोपाल ने इस दौरान यूएस जजमेंट का हवाला दिया जिसमें सोशल सिक्यॉरिटी नंबर को बहाल रखा गया है। इस दौरान वेणुगोपाल ने बताया कि सोशल सिक्यॉरिटी नंबर के लिए क्या-क्या जानकारी ली गई और आधार के लिए क्या-क्या जानकारी मांगी गई है। वेणुगोपाल ने दोहराया कि जीवन का अधिकार निजता के अधिकार के उपर है और जीवन का अधिकार की सर्वोपरि रहेगा।

केंद्र ने अपनी दलीलें पूरी की

वेणुगोपाल ने इसके बाद खड़ग सिंह और एमपी शर्मा केस में दिए जजमेंट का हवाला देकर कहा कि दोनों ही जजमेंट सही तौर पर दिया गया फैसला है और कहा गया कि उसमें याचिकाकर्ता के दावे को यानी निजता को मौलिक अधिकार नही माना गया। इस दलील के साथ वेणुगोपाल ने अपनी दलील पूरी कर ली। महाराष्ट्र की ओर से सीनियर एडवोकेट सीए सुंदरम ने दलील पेश की और कहा कि मूल सवाल ये है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। अगर निजता के अधिकार मौलिक अधिकार के तौर पर देखना है तो तमाम मौलिक अधिकार को देखना होगा। निजता के कुछ पहलुओं को संरक्षित किया जा सकता है और उसे मौलिक अधिकार कहा जा सकता है। लेकिन निजता का प्रत्येक पहलू मौलिक अधिकार नहीं है। खड़ग सिंह के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही कहा है।

निजता और स्वतंत्रता का अधिकार परस्पर नहीं हैः सुंदरम
जस्टिस चेलामेश्वर ने सवाल किया कि क्या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ डाटा लिया जा सकता है। इस पर सुंदरम ने कहा कि इसके बीच में निजता को नहीं लाया जाना चाहिए। तब जस्टिस नरिमन ने कहा कि गरिमा का सवाल है। सुंदरम ने कहा कि गरिमा जीवन के अधिकार से जुड़ा हुआ है ऐसे में जीवन के अधिकार व स्वतंत्रता के अधिकार में दावा किया जा सकता है। जस्टिस नरिमन ने कहा कि गरिमा तो प्रस्तावना में है और और ये मौलिक अधिकार के भीतर है। तब एडवोकेट सुंदरम ने कहा कि गरिमा का अधिकार को नैसर्गिक अधिकार है लेकिन निजता तो विदेशी सिद्धांत है। तब जस्टिस बोबडे ने टिप्पणी की कि निजता तो गरिमामय जीवन के लिए शर्त है। लेकिन तब सुंदरम ने कहा कि निजता तो हल्का अधिकार है। निजता में कई उम्मीद बंधेगी और उसे अन्य मौलिक अधिकार की कसौटी पर देखना होगा। निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता परस्पर नहीं है। याथार्थ और ठोस अधिकार को संरक्षित किया जाना चाहिए लेकिन निजता का अधिकार ठोस अधिकार नहीं है। देखा जाए तो निजता का अधिकार समान्य कानूनी अधिकार है और ये कानूनी अधिकार है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बताएं कि निजता प्रभावित हुआ और मौलिक अधिकार नहीं

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि एक उदाहरण दें कि निजता प्रभावित हुआ लेकिन मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हुआ। मेरा जीवन का अधिकार अलग नहीं किया जा सकता। मैं अपने आप को दासता के लिए बेच नहीं सकता चाहे ये अधिकार मेरे पास क्यों न हो। कोई नहीं कह सकता कि ये तमाम अधिकार संपूर्ण हैं। जस्टिस नरिमन ने कहा कि निजता को दो भाग में रखा जा सकता है शरीर और दिमाग की निजता। सुंदरम ने कहा कि सूचनात्मक निजता को कानून में संरक्षित किया गया है और ऐसे में इसे मौलिक अधिकार बताने की जरूरत नहीं है। जस्टिस नरिमन ने कहा कि निजता स्वतंत्रता से संबंधित है। एडवोकेट सुंदरम की दलील जारी है अब अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने