Pitru Paksha 2021: एकादशी का श्राद्ध करता है संपूर्ण पापों का नाश, पितृ पक्ष में तिथि का महत्व



Pitru Paksha 2021: पितृ पक्ष के दौरान अगर पितरों के निमित्त श्राद्ध न किया जाए तो पितृ गृहस्थ को दारुण शाप देकर पितृलोक लौट जाते है। एकादशी का श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ दान है। वह समस्त वेदों का ज्ञान प्राप्त कराता है। उसके सम्पूर्ण पापकर्मों का विनाश हो जाता है तथा उसे निरंतर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। वहीं, द्वादशी तिथि के श्राद्ध से राष्ट्र का कल्याण तथा प्रचुर अन्न की प्राप्ति कही गई है। त्रयोदशी के श्राद्ध से संतति, बुद्धि, धारणाशक्ति, स्वतंत्रता, उत्तम पुष्टि, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।




दिन का महत्व

भविष्यवक्ता अनीष व्यास ने बताया कि जो पूर्णमासी के दिन श्राद्ध आदि करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है। प्रतिपदा धन-सम्पत्ति के लिए होती है एवं श्राद्ध करने वाले की प्राप्त वस्तु नष्ट नहीं होती।

जो सप्तमी को श्राद्ध आदि करता है उसको महान यज्ञों के पुण्य फल प्राप्त होते हैं। अष्टमी को श्राद्ध करने वाला सम्पूर्ण समृद्धयिां प्राप्त करता है। नवमी को श्राद्ध करने से ऐश्वर्य एवं मन के अनुसार अनुकूल चलने वाली स्त्री को प्राप्त करता है। दशमी तिथि का श्रद्धा मनुष्य ब्रह्मत्व की लक्ष्मी प्राप्त कराता है।

ऐसे करें श्राद्ध

श्राद्ध करने के लिए किसी ब्राह्मण को आमंत्रित करें, भोज कराएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी दें।
श्राद्ध के दिन अपनी सामर्थ्य या इच्छानुसार खाना बनाएं।
आप जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं जो उचित रहेगा।
मान्यता है कि श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और अपनी पसंद का भोजन कर तृप्त हो जाते हैं।
खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें।
शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि।

श्राद्ध विधि


विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध करने की भी विधि होती है। यदि पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्म न किया जाए तो मान्यता है कि वह श्राद्ध कर्म निष्फल होता है और पूर्वजों की आत्मा अतृप्त ही रहती है। शास्त्रसम्मत मान्यता यही है कि किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है। इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।

श्राद्ध करने के लिए सबसे पहले जिसके लिए श्राद्ध करना है उसकी तिथि का ज्ञान होना जरूरी है। जिस तिथि को मृत्यु हुई हो उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए। लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि हमें तिथि पता नहीं होती तो ऐसे में आश्विन अमावस्या का दिन श्राद्ध कर्म के लिए श्रेष्ठ होता है क्योंकि इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण है कि श्राद्ध करवाया कहां पर जा रहा है। यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए.भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।

श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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