2G केसः CBI-ED के लिए क्यों आसान नहीं होगा ओपी सैनी के फैसले को चुनौती देना?

तेजतर्रार माने जाने वाले स्पेशल जज ओ पी सैनी ने टू-जी केस में 1550 पेज का जजमेंट बड़े सधे अंदाज में और सूझबूझ के साथ लिखा है. जांच एजेंसियों यानी अभियोजन पक्ष सीबीआई और ईडी के लिए इसे चुनौती देना अच्छी खासी चुनौती ही होगा. क्योंकि जज ओपी सैनी ने साफ शब्दों में बिना लागलपेट के सीबीआई और ईडी के साथ दूरसंचार विभाग के बाबुओं के सामान्य ज्ञान, तकनीकी ज्ञान और कानूनी ज्ञान सबकी पोल खोल कर रख दी.

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से कोई रिकॉर्ड और ऐसा कोई सबूत नहीं है जो आरोपियों के अपराध साबित करता हो. फिर चाहे वो कट ऑफ डेट के फिक्स करने की बात हो, या 'पहले आओ, पहले पाओ' नीति के मैन्युपुलेशन का मामला हो, या कि कंपनियों को स्पेक्ट्रम देने में हेराफेरी की बात हो या कलइंगर टीवी को 200 करोड़ रुपये रिश्वत के तौर पर देने का आरोप हो.

जस्टिस सैनी ने ये भी कहा है कि इस केस के आरोप पत्र ऑफिशियल रिकॉर्ड की मिसरीडिंग, अपने मतलब की चुनिंदा रीडिंग और संदर्भ से परे हट कर मतलब निकलने जैसी है.

फैसले के मुताबिक जांच एजेंसियों के ये आरोप पत्र जांच के दौरान गवाहों की तरफ से दी हुई मौखिक गवाही पर आधारित हैं. क्योंकि वो बातें गवाहों ने कोर्ट में गवाही के दौरान कभी नहीं बोली.

बता दें कि अगर गवाहों ने मौखिक तौर पर बयान दिए है और ऑफिशियल रिकॉर्ड के खिलाफ जाते है तो उसे कानून में मान्यता नहीं है.

फैसला ये भी कहता है कि आरोप पत्र में रिकॉर्ड किये गए बहुत से तथ्य गलत हैं, मसलन एंट्री फीस के रिवीजन की वित्त सचिव द्वारा सिफारिश करना और एंट्री फी के रिवीजन के लिए ट्राई की सिफारिश.

2जी फैसले में कोर्ट ने कहा कि नतीजा यही है और मुझे ये कहने में ये बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि आरोपियों के खिलाफ केस को साबित करने में अभियोजन पक्ष बुरी तरह से नाकाम रहा. कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र वेल्ड कोरियोग्राफ है.

कोर्ट ने अधिकारियों के नाकारेपन को रेखांकित करते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ दलीलों को साबित करने वाले पुख्ता सबूत नहीं हैं. कानूनी और तकनीकी शब्दावली को समझने में टेलीकॉम विभाग के अधिकारियों की समझदारी सवालों के घेरे में है.

जज ने कहा कि उनको कई रोजमर्रा में इस्तेमाल होनेवाली चीजों के अर्थ तक मालूम नहीं थे, जिरह के दौरान भी कई दफा तो अभियोजन पक्ष ये ही तय नहीं कर पाया कि वो आखिर साबित क्या करना चाहता है?

कट ऑफ डेट्स, फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व थ्योरी जैसे कई मुद्दों पर आरोपियों के खिलाफ किसी आपराधिक साज़िश का सबूत अभियोजन पक्ष कोर्ट में रिकॉर्ड पर नहीं दे पाया.

अभियोजन पक्ष की दलील, गवाहों के बयान और पेश किए गए सबूत के बीच तालमेल ही नहीं दिखा. लिहाजा अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

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