एक ने बोझ समझ सड़क पर फेंका, दूसरी ने 24 घंटे में बेटी माना, नहीं मिली गोद

इंदौर। पैदा होते ही जिसे बोझ समझकर सड़क पर फेंक दिया गया, उसे 24 घंटे बाद ही ममता की छांव मिल गई, लेकिन सरकारी व्यवस्था ने भावनाओं को दरकिनार कर उसे अस्पताल भिजवा दिया। यहां से अब उसे अनाथाश्रम की छत मिलेगी। वहीं परिवार की ममता के आड़े आ रहे सरकारी सिस्टम ने एक बार फिर गोद लेने की प्रक्रिया पर सवार खड़े कर दिए हैं।
रविवार को मानपुर हाइवे से गुजर रहे कार सवार शर्मा परिवार को सड़क पर नवजात बच्ची कपड़े में लिपटी हुई मिली। परिवार का दिल पिघला और उसे घर (मानपुर) ले आया। बच्ची की गर्भनाल भी कटी हुई नहीं थी और शरीर पर गंदगी लगी हुई थी। परिवार की महिला ने बच्ची को नहलाकर नए कपड़े पहनाए। उनके दो बेटे हैं। उन्होंने मान लिया कि अब यह बच्ची अपने साथ ही रहेगी। बेटों ने भी सोचा कि उनके लिए बहन आ गई है, लेकिन रात होने तक ही उनकी खुशी काफूर हो गई। जानकारी लगने पर पुलिस ने बच्ची को अपनी कस्टडी में लिया।

अस्पताल पहुंच गया परिवार

बाल कल्याण समिति को जानकारी लगने पर अध्यक्ष माया पांडे ने बच्ची को तुरंत एमवायएच में रखवाने के निर्देश दिए। हालांकि बेटी पाकर भावुक हुई महिला ने बच्ची को लौटाने से मना भी किया। इसके बाद वे अस्पताल तक भी पहुंच गए। परिवार का कहना था कि यह बच्ची उन्हें गोद दे दी जाए।

जरूरी नहीं कि वही बच्ची गोद मिले

सुश्री पांडे ने बताया कि बच्ची स्वस्थ है। चार-पांच दिन ऑब्जर्वेशन में रखने के बाद अनाथालाय में रखेंगे। समिति के मुताबिक कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही बच्चे को गोद ले सकते हैं। इसके लिए तीन-चार घंटे तक समिति अध्यक्ष अस्पताल में रहीं और परिवार को समझाइश दी। परिवार सरकारी प्रक्रिया से बच्ची को गोद लेने के लिए भी तैयार हो गया। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि उन्हें यही बच्ची मिलेगी, क्योंकि प्रतीक्षा सूची के मुताबिक बच्ची को गोद दिया जाता है।

पालना योजना पर सवाल?

इस घटना ने एक बार फिर महिला बाल विकास विभाग की पालना योजना पर सवाल खड़े कर दिए। मंत्री अर्चना चिटनीस ने हर अस्पताल, आश्रम, बाजार, मंदिर में पालने लगाने के आदेश दिए हैं, लेकिन अब तक इस पर अमल नहीं हुआ है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है समय रहते मासूम को सड़क से नहीं उठाया जाता तो उसके साथ हादसा हो सकता था।

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