स्वर्गीय पंडित नरेश बाजपेयी आज 11 वीं पुण्यतिथि: जब याद आए बहुत याद आए--- आज पंडित नरेश बाजपेई पूर्व एमआईसी सदस्य नगर निगम आज मामा श्री को हम लोगों के बीच से गए हुए 11 वर्ष पूर्ण हो गए। लेकिन आज भी वे परिवार के साथ साथ उन हजारों दिलों में बसते हैं। जिनके लिए उनका एक ही संदेश था और एक ही उनके मन में विचार हुआ करता था। जहां वे परिवार को समेटकर चलते थे। वही में अपने राजनैतिक और सामाजिक जीवन में एक अलग अंदाज में जीते थे, हां इतना जरूर है की राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में उनका एक संदेश जनसेवा यह उनके लिए सर्वोपरि था। जनसेवा के सशक्त हस्ताक्षर थे-- उनके राजनैतिक जीवन उनको विरासत में मिला था। उनके पिता श्री रज्जू गुरु जो नगर निगम में उपमहापौर भी थे। उनसे उन्होंने सीखा राजनीति और समाज सेवा अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में भी उन्होंने शुरुआत केसरवानी कॉलेज की वे प्रथम छात्रसंघ अध्यक्ष थे। उसके बाद उन्होंने युवक कांग्रेस का शहर का अध्यक्ष पद भी बखूबी संभाला मैं तो बहुत छोटा था। लेकिन जब परिवार में आज भी चर्चा होती होती है ,तो उनके उस समय पर जॉन के पास भीड़ हुआ करती थी। पूर्व शहर के युवा उनके साथ हुआ करते थे। उस समय भी उनके अंदर एक ही भाव था जनसेवा। *पंडित मुंदन शर्मा, पंडित लक्ष्मी नारायण चनसैरिया , पंडित अरुण शुक्ला पत्रकार थे अभिन्न मित्र---- अपने राजनैतिक जीवन में उनके मित्र भी उन्हीं की तरह जनसेवा के माध्यम से लोगों के हृदय में वास करते थे। जिनमें मुंदन शर्मा जो जबलपुर के सांसद एवं कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, वे भी पंडित नरेश बाजपेई के राजनीतिक सलाहकार के साथ-साथ गजब मित्रता रखते थे । वही लक्ष्मी नारायण चंसोरिया औरउनकी जोड़ी दोनों अपनी बुलेट में घूमते हुए देखे जाते थे। वही पंडित अरुण शुक्ला( चाचा) जी जो नई दुनिया के संपादक हुआ करते थे दोनों ऐसा कहा जाता है कि पंडित नरेश बाजपेई और पंडित अरुण शुक्ला जब बलदेव बाग चौराहे पर बैठते।शहर का कोई भी अधिकारी अगर वहां से निकलता । तो दोनों से मिले बिना वहां से आगे नहीं जाते थे। जनसेवा भावना ऐसी मैंने एक बार स्वर्गीय पंडित रामगोपाल शर्मा से सुना था। पंडित अरुण शुक्ला और पंडित नरेश बाजपेई जब कड़ाके की ठंड पड़ती थी। दोनों कंबल की गांठ लेकर निकल पड़ते जल सेवा करने ना फोटो खिंचवाते ना किसी को बताते, बस जहां जो गरीब मिला ठंड में सोता उसके ऊपर कंबल डाल कर आगे बढ़ जाते । इस तरह पता नहीं कितने ऐसे कार्य थे जो वह जन सेवा के माध्यम से करते और किसी को पता भी नहीं चलता। उनके नजदिकी दोस्तों में नरेंद्र महिधर, भगवान दास मिश्रा(मुन्डे गुरु) पूर्व पार्षद भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडे़ रहते थे । गजब की लेखनी गजब की पत्रकारिता भी थी नरेश बाजपेई की--* वह एक अच्छे पत्रकार भी थे पत्रकार संघ के अध्यक्ष रहते हुए यह हमेशा पत्रकार के हितों के विषय में चर्चा करते और लिखते भी थे। जब मैंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत 2004 से सी टीवी न्यूज़ के माध्यम से शुरू की तो यकीन मानिए बहुत सीखा उनसे जो आज मुझे उन्हीं के द्वारा स्थापित सांध्य बन्धु में कार्य करने का मौका मिल रहा है। नगर निगम में सत्ता पक्ष में होते हुए विपक्ष भी उनको अपने दिलों में बैठाता था--- जब वे नगर निगम में कांग्रेस की तरफ से चुनाव जीतकर एम आई सी सदस्य बने उनको 4 विभाग मिले थे। लेकिन सत्ता पक्ष में होने के बाद भी आज भी विपक्ष में रहे उस समय के पार्षद पूर्व महापौर सदानंद गोडबोले एवं सुमित्रा बाल्मीकि पूर्व नगर निगम अध्यक्ष पूर्व नगर निगम अध्यक्ष राजेश मिश्रा उनके साथ बिताए नगरनिगम के समय के विषय में बताते ही उनकी भी आंखों में बात करते-करते आंसू आ जाते हैं। और कहते हैं अनुराग नरेश दादा की बात अलग थी। उनके जैसे नेता और सच्चे जनसेवक बहुत कम होते हैं। वे बताते हैं कि भले वो सत्ता पक्ष में थे लेकिन जब भी दादा मिलते तो कहते यार तुम लोग अपने काम जो मुझे निसंकोच बताया करो और तो और वह हमेशा विपक्ष के रूम में जाकर बैठ जाते थे। और शायद यही कारण था कि उस समय के महापौर पंडित विश्वनाथ दुबे उनको अपने साथ लिए बिना चलते नहीं थे। पं.अतुल नरेश बाजपेयी ने सम्हाली जनसेवा की बागडोर-- उनके बाद उनके पुत्र पंडित अतुल नरेश बाजपेयी ने उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए जनसेवा की बागडोर अपने हाथों में संभाल ली, चाहे वार्ड की समस्या हो या परिवार या कोई भी ऐसी समस्या जिसका निवारण भी कर सकते हैं। उनके पास कोई आता है तू भी तन मन धन से भरपूर कोशिश करते हैं। उनके पास आए व्यक्ति की मदद हो सके। और उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए एक काम और किया। अपने पिता की एक और विरासत जिसके संस्थापक पंडित नरेश बाजपेई थे। सांध्य बंधु दैनिक समाचार पत्र को पुनः नए रूप में प्रकाशित करने का काम शुरू किया। आज हमें अपने मामा की कमी महसूस तो नहीं होती क्योंकि पंडित अतुल नरेश बाजपेई अपने पूरे बड़े भाई का फर्ज अदा करते हुए जिस तरीके से मामा मार्गदर्शन करते थे। उसी प्रकार बेबी आज मेरा प्रदर्शन समय-समय पर करते हैं। आज उनकी 11 वीं पुण्यतिथि पर नमन करता हूं और मामा श्री के चरणो में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं-। पंडित अनुराग दीक्षित एवं समस्त मित्रगण