भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी, 2022 को आम बजट पेश करेंगी. आम बजट सुबह 11 बजे पेश होगा. निर्मला सीतारमण चौथी बार बजट पेश करेंगी.
इससे पहले 31 जनवरी को आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. आइए जानते हैं कैसे तैयार होता है बजट और क्या है इससे जुड़ी दिलचस्प जानकारियां.
आम या भारत का संघीय बजट क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के मुताबिक किसी एक खास साल में केंद्र सरकार के वित्तीय ब्योरे को संघीय बजट कहते हैं. संविधान के मुताबिक सरकार को हर वित्त वर्ष की शुरुआत में संसद में बजट पेश करना होता है.
वित्त वर्ष की अवधि मौजूदा वर्ष के 1 अप्रैल से अगले साल के 31 मार्च तक होती है. सरकार की ओर पेश वित्तीय ब्योरे में किसी खास वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (राजस्व और अन्य प्राप्तियां) और खर्चे को दिखाया जाता है.
सरल शब्दों में कहा जाए तो बजट अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार की वित्तीय योजना है. दरअसल इसके जरिये यह तय करने की कोशिश की जाती है सरकार अपने राजस्व की तुलना में खर्चे को किस हद तक बढ़ा सकती है.
यह कवायद इसलिए होती है क्योंकि उसे राजकोषीय घाटा का एक लक्ष्य हासिल करना होता है. यह लक्ष्य राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003 ) के तहत तय किया जाता है.
बजट की नींव कैसे रखी जाती है?
देश में किसी साल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा बाजार कीमत को नॉमिनल जीडीपी कहते हैं. इसे बजट की बुनियाद या नींव कहा जा सकता है क्योंकि बगैर नॉमिनल जीडीपी जाने अगले साल का बजट बनाना संभव नहीं होगा.
बजट के लिए राजकोषीय घाटा का लक्ष्य कितना जरूरी?
राजकोषीय घाटा नॉमिनल जीडीपी के फीसदी में तय किया जाता है. राजकोषीय घाटा का जो लेवल तय होता है, सरकार उस साल वहीं तक कर्ज लेती है. अगर नॉमिनल जीडीपी ज्यादा होगी तो सरकार अपना खर्च चलाने के लिए बाजार से ज्यादा कर्ज ले पाएगी.
नॉमिनल जीडीपी जाने बगैर सरकार यह तय नहीं कर सकती कि उसे राजकोषीय घाटा कितना रखना है और न ही वह यह पता कर सकती है कि आने वाले साल में सरकार के पास कितना राजस्व आएगा.
बगैर राजस्व का अंदाजा लगाए सरकार यह तय नहीं कर पाएगी कि उसे किस योजना में कितना खर्च करना है.
बजट बनाने की प्रक्रिया संसद में इसे पेश करने से छह महीने पहले शुरू हो जाती है. यह काफी-लंबी चौड़ी प्रक्रिया होती है. इसके तहत अलग-अलग प्रशासनिक निकायों से आंकड़े मंगाए जाते हैं. इन आंकड़ों से पता किया जाता है कि उन्हें कितने फंड की जरूरत है.
इसके साथ ही यह तय किया जाता है कि जनकल्याण योजनाओं के लिए कितने पैसों की जरूरत होगी. इसी हिसाब से अलग-अलग मंत्रालयों को फंड मुहैया कराए जाते हैं.
बजट बनाने में वित्त मंत्री के अलावा वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव अहम भूमिका निभाते हैं. इस दौरान हर रोज कई बार वित्त मंत्री से उनकी बजट के सिलसिले पर बातचीत होती है. बैठक या तो नॉर्थ ब्लॉक ( जहां वित्त मंत्रालय है) में होती है या वित्त मंत्री के आवास पर.
बजट बनाने के दौरान पूरी टीम को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष का सहयोग मिलता रहता है. अलग-अलग क्षेत्र के एक्सपर्ट भी बजट टीम में काम करते हैं.
बजट पेश करने से पहले विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों और उद्योग संगठनों के लोगों से भी वित्त मंत्री सलाह-मशविरा करते हैं. इन मुलाकातों में ये संगठन अपने-अपने सेक्टर को सुविधाएं और टैक्स राहत देने की मांग रखते हैं.
बजट से पहले तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को अंतिम रूप दिया जाता है.
बजट में क्या-क्या शामिल होता है?
सरकार का आम बजट मूल रूप से उसके खर्चे और राजस्व (रेवेन्यू) का ब्योरा होता है. सरकार के खर्च में जनकल्याण योजनाओं में दिया जाने वाला फंड, आयात के खर्चे, सेना की फंडिंग, वेतन और कर्ज पर दिया जाने वाला ब्याज वगैरह शामिल होता है.
जबकि सरकार टैक्स लगाने के साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र के कारोबारों से कमाई और बॉन्ड जारी कर राजस्व इकट्ठा करती है.
इस बजट के दो हिस्से होते हैं- रेवेन्यू बजट और कैपिटल बजट. रेवेन्यू बजट में ही खर्च और राजस्व का ब्योरा होता है. रेवेन्यू प्राप्ति में टैक्स और गैर टैक्स स्रोत से हासिल रकम दिखाई जाती है.
रेवेन्यू खर्च सरकार के हर दिन के कामकाज और नागरिकों को दी जाने वाली सेवाओं में लगा खर्च होता है. अगर रेवेन्यू खर्च रेवेन्यू प्राप्ति से ज्यादा होता है तो सरकार को राजस्व का घाटा होता है.
कैपिटल बजट या पूंजी बजट सरकार की प्राप्तियों और उसकी ओर से किए गए भुगतान का ब्योरा होता है. इसमें जनता से लिया गया लोन ( बॉन्ड के जरिये), विदेश से और आरबीआई से लिया गया लोन शामिल होता है.
वहीं पूंजीगत खर्च में मशीनरी, औजार, बिल्डिंग, हेल्थ सुविधा, शिक्षा पर किया गया खर्च शामिल होता है. जब सरकार के राजस्व से ज्यादा खर्च हो जाता है तो राजकोषीय घाटे की स्थित पैदा हो जाती है.
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स्वतंत्र भारत का पहला बजट
स्वतंत्र भारत का पहला बजट षणमुगम चेट्टि ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया था. हालांकि इसमें सिर्फ अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गई थी और कोई टैक्स नहीं लगाया गया था.
बजट में शामिल प्रस्तावों को संसद के अनुमोदन की जरूरत होती है. संसद की मंजूरी मिल जाने के बाद ये प्रस्ताव 1 अप्रैल से लागू हो जाते हैं और अगले साल 31 मार्च तक जारी रहते हैं. 1947 से लेकर अब तक देश में 73 आम बजट, 14 अंतरिम बजट या चार खास या मिनी बजट पेश किए जा चुके हैं.
षणमुगम शेट्टी के बाद वित्त मंत्री जॉन मथाई ने पहला संयुक्त-भारत बजट पेश किया था, इसमें रजवाड़ों के तहत आने वाले विभिन्न राज्यों का वित्तीय ब्योरा भी पेश किया गया था.
सबसे ज्यादा बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड किसके नाम?
मोरारजी देसाई ने वित्त मंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा दस बार बजट पेश किया. बाद में वह देश के प्रधानमंत्री भी बने. वित्त मंत्री के तौर काम कर रहे वी.पी सिंह के इस्तीफे के बाद 1987-1989 के बीच राजीव गांधी ने बजट पेश किया था. एनडी तिवारी ने 1988-89 और एसबी चह्वाण ने 1989-90 का बजट पेश किया था. मधु दंडवते 1990-91 का बजट पेश किया था.
इससे पहले 31 जनवरी को आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. आइए जानते हैं कैसे तैयार होता है बजट और क्या है इससे जुड़ी दिलचस्प जानकारियां.
आम या भारत का संघीय बजट क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के मुताबिक किसी एक खास साल में केंद्र सरकार के वित्तीय ब्योरे को संघीय बजट कहते हैं. संविधान के मुताबिक सरकार को हर वित्त वर्ष की शुरुआत में संसद में बजट पेश करना होता है.
वित्त वर्ष की अवधि मौजूदा वर्ष के 1 अप्रैल से अगले साल के 31 मार्च तक होती है. सरकार की ओर पेश वित्तीय ब्योरे में किसी खास वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (राजस्व और अन्य प्राप्तियां) और खर्चे को दिखाया जाता है.
सरल शब्दों में कहा जाए तो बजट अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार की वित्तीय योजना है. दरअसल इसके जरिये यह तय करने की कोशिश की जाती है सरकार अपने राजस्व की तुलना में खर्चे को किस हद तक बढ़ा सकती है.
यह कवायद इसलिए होती है क्योंकि उसे राजकोषीय घाटा का एक लक्ष्य हासिल करना होता है. यह लक्ष्य राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003 ) के तहत तय किया जाता है.
बजट की नींव कैसे रखी जाती है?
देश में किसी साल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा बाजार कीमत को नॉमिनल जीडीपी कहते हैं. इसे बजट की बुनियाद या नींव कहा जा सकता है क्योंकि बगैर नॉमिनल जीडीपी जाने अगले साल का बजट बनाना संभव नहीं होगा.
बजट के लिए राजकोषीय घाटा का लक्ष्य कितना जरूरी?
राजकोषीय घाटा नॉमिनल जीडीपी के फीसदी में तय किया जाता है. राजकोषीय घाटा का जो लेवल तय होता है, सरकार उस साल वहीं तक कर्ज लेती है. अगर नॉमिनल जीडीपी ज्यादा होगी तो सरकार अपना खर्च चलाने के लिए बाजार से ज्यादा कर्ज ले पाएगी.
नॉमिनल जीडीपी जाने बगैर सरकार यह तय नहीं कर सकती कि उसे राजकोषीय घाटा कितना रखना है और न ही वह यह पता कर सकती है कि आने वाले साल में सरकार के पास कितना राजस्व आएगा.
बगैर राजस्व का अंदाजा लगाए सरकार यह तय नहीं कर पाएगी कि उसे किस योजना में कितना खर्च करना है.
क्या आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?कैसे शुरू होती है बजट बनाने की प्रक्रिया?
जीडीपी क्या होती है और आम जनता के लिए ये क्यों अहम है?
बजट बनाने की प्रक्रिया संसद में इसे पेश करने से छह महीने पहले शुरू हो जाती है. यह काफी-लंबी चौड़ी प्रक्रिया होती है. इसके तहत अलग-अलग प्रशासनिक निकायों से आंकड़े मंगाए जाते हैं. इन आंकड़ों से पता किया जाता है कि उन्हें कितने फंड की जरूरत है.
इसके साथ ही यह तय किया जाता है कि जनकल्याण योजनाओं के लिए कितने पैसों की जरूरत होगी. इसी हिसाब से अलग-अलग मंत्रालयों को फंड मुहैया कराए जाते हैं.
बजट बनाने में वित्त मंत्री के अलावा वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव अहम भूमिका निभाते हैं. इस दौरान हर रोज कई बार वित्त मंत्री से उनकी बजट के सिलसिले पर बातचीत होती है. बैठक या तो नॉर्थ ब्लॉक ( जहां वित्त मंत्रालय है) में होती है या वित्त मंत्री के आवास पर.
बजट बनाने के दौरान पूरी टीम को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष का सहयोग मिलता रहता है. अलग-अलग क्षेत्र के एक्सपर्ट भी बजट टीम में काम करते हैं.
बजट पेश करने से पहले विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों और उद्योग संगठनों के लोगों से भी वित्त मंत्री सलाह-मशविरा करते हैं. इन मुलाकातों में ये संगठन अपने-अपने सेक्टर को सुविधाएं और टैक्स राहत देने की मांग रखते हैं.
बजट से पहले तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को अंतिम रूप दिया जाता है.
बजट में क्या-क्या शामिल होता है?
सरकार का आम बजट मूल रूप से उसके खर्चे और राजस्व (रेवेन्यू) का ब्योरा होता है. सरकार के खर्च में जनकल्याण योजनाओं में दिया जाने वाला फंड, आयात के खर्चे, सेना की फंडिंग, वेतन और कर्ज पर दिया जाने वाला ब्याज वगैरह शामिल होता है.
जबकि सरकार टैक्स लगाने के साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र के कारोबारों से कमाई और बॉन्ड जारी कर राजस्व इकट्ठा करती है.
इस बजट के दो हिस्से होते हैं- रेवेन्यू बजट और कैपिटल बजट. रेवेन्यू बजट में ही खर्च और राजस्व का ब्योरा होता है. रेवेन्यू प्राप्ति में टैक्स और गैर टैक्स स्रोत से हासिल रकम दिखाई जाती है.
रेवेन्यू खर्च सरकार के हर दिन के कामकाज और नागरिकों को दी जाने वाली सेवाओं में लगा खर्च होता है. अगर रेवेन्यू खर्च रेवेन्यू प्राप्ति से ज्यादा होता है तो सरकार को राजस्व का घाटा होता है.
कैपिटल बजट या पूंजी बजट सरकार की प्राप्तियों और उसकी ओर से किए गए भुगतान का ब्योरा होता है. इसमें जनता से लिया गया लोन ( बॉन्ड के जरिये), विदेश से और आरबीआई से लिया गया लोन शामिल होता है.
वहीं पूंजीगत खर्च में मशीनरी, औजार, बिल्डिंग, हेल्थ सुविधा, शिक्षा पर किया गया खर्च शामिल होता है. जब सरकार के राजस्व से ज्यादा खर्च हो जाता है तो राजकोषीय घाटे की स्थित पैदा हो जाती है.
नौकरी के लिए तरसते नौजवान: कितना ग़हरा है भारत का बेरोज़गारी संकट?
जीडीपी का चक्का उल्टा घूमा तो क्या होगा असर
स्वतंत्र भारत का पहला बजट
स्वतंत्र भारत का पहला बजट षणमुगम चेट्टि ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया था. हालांकि इसमें सिर्फ अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गई थी और कोई टैक्स नहीं लगाया गया था.
बजट में शामिल प्रस्तावों को संसद के अनुमोदन की जरूरत होती है. संसद की मंजूरी मिल जाने के बाद ये प्रस्ताव 1 अप्रैल से लागू हो जाते हैं और अगले साल 31 मार्च तक जारी रहते हैं. 1947 से लेकर अब तक देश में 73 आम बजट, 14 अंतरिम बजट या चार खास या मिनी बजट पेश किए जा चुके हैं.
षणमुगम शेट्टी के बाद वित्त मंत्री जॉन मथाई ने पहला संयुक्त-भारत बजट पेश किया था, इसमें रजवाड़ों के तहत आने वाले विभिन्न राज्यों का वित्तीय ब्योरा भी पेश किया गया था.
सबसे ज्यादा बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड किसके नाम?
मोरारजी देसाई ने वित्त मंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा दस बार बजट पेश किया. बाद में वह देश के प्रधानमंत्री भी बने. वित्त मंत्री के तौर काम कर रहे वी.पी सिंह के इस्तीफे के बाद 1987-1989 के बीच राजीव गांधी ने बजट पेश किया था. एनडी तिवारी ने 1988-89 और एसबी चह्वाण ने 1989-90 का बजट पेश किया था. मधु दंडवते 1990-91 का बजट पेश किया था.