30 जनवरी 1948 क्या कर रहे थे महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे

अपने अंतिम दिनों में गांधी इस हद तक अपनी मौत का पूर्वानुमान लगा रहे थे कि लगता था कि वो ख़ुद अपनी मौत के षडयंत्र का हिस्सा हैं.

20 जनवरी को जब उनकी हत्या का पहला प्रयास किया गया उसके बाद से अगले दस दिनों तक उन्होंने अपनी बातचीत, पत्रों और प्रार्थना सभा के भाषणों में कम से कम 14 बार अपनी मृत्यु का ज़िक्र किया.

21 जनवरी को उन्होंने कहा, "अगर कोई मुझ पर बहुत पास से गोली चलाता है और मैं मुस्कुराते हुए, दिल में राम नाम लेते हुए उन गोलियों का सामना करता हूं तो मैं बधाई का हक़दार हूं."

अगले दिन उन्होंने कहा कि "ये मेरा सौभाग्य होगा अगर ऐसा मेरे साथ होता है."

29 जनवरी, 1948 की शाम राजीव गांधी को लिए इंदिरा गांधी, नेहरू की बहन कृष्णा हठीसिंह, नयनतारा पंडित और पद्मजा नायडू गांधी से मिलने बिरला हाउस गए थे.

कैथरीन फ़्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं, "घर से निकलने से पहले इंदिरा गांधी को माली ने बालों में लगाने के लिए चमेली के फूलों का एक गुच्छा दिया. इंदिरा ने तय किया कि वो उसे गांधीजी को देंगी. बिरला हाउस में वो लोग लॉन में बैठे हुए थे जहां गांधी एक कुर्सी पर बैठे धूप सेंक रहे थे."

वो लिखती हैं, "चार साल के राजीव थोड़ी देर तो तितलियों के पीछे दौड़ते रहे लेकिन फिर गांधी के पैरों के पास आकर बैठ गए और इंदिरा के लाए चमेली के फूलों को उनके पैरों की उंगलियों में फंसाने लगे. गांधी ने हंसते हुए राजीव के कान पकड़ कर कहा, 'ऐसा मत करो. सिर्फ़ मरे हुए व्यक्तियों के पैरों में फूल फंसाए जाते हैं."

तड़के शुरू हुआ गांधीजी का दिन
30 जनवरी, 1948 को गांधी हमेशा की तरह सुबह साढ़े तीन बजे उठे. उन्होंने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया.
इसके बाद उन्होंने शहद और नींबू के रस से बना एक पेय पिया और दोबारा सोने चले गए. जब वो दोबारा उठे तो उन्होंने ब्रजकृष्ण से अपनी मालिश करवाई और सुबह आए अख़बार पढ़े.

इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के भविष्य के बारे में लिखे अपने नोट में थोड़ी तब्दीली की और रोज़ की तरह आभा से बांग्ला भाषा सीखने की अपनी मुहिम जारी रखी.

नाश्ते में उन्होंने उबली सब्ज़ियां, बकरी का दूध, मूली, टमाटर और संतरे का जूस लिया.
उधर शहर के दूसरे कोने में सुबह सात बजे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के छह नंबर वेटिंग रूम में जब नारायण आप्टे और विष्णु करकरे पहुंचे, उस समय तक नाथूराम गोडसे जाग चुके थे.

बुर्का पहनकर जाने का प्रयोग फेल हुआ
डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस अपनी किताब 'फ़्रीडम ऐट मिडनाइट' में लिखते हैं, "किसी ने सुझाव दिया कि नाथूराम एक बुर्का पहन कर गांधीजी की प्रार्थना सभा में जाएं. बाज़ार से एक बड़ा-सा बुर्का भी ख़रीदा गया. जब नाथूराम ने उसे पहन कर देखा तो उन्हें महसूस हुआ कि ये युक्ति काम नहीं करेगी. उनके हाथ ढीले-ढाले बुर्के की तहों में फंस कर रह जाते थे."

"वो बोले- ये पहन कर तो मैं अपनी पिस्तौल ही नहीं निकाल पाउंगा और औरतों के लिबास में पकड़ा जाउंगा तो उसकी वजह मेरी ताउम्र बदनामी होगी, सो अलग. आख़िर में आप्टे ने कहा कभी-कभी सीधा साधा तरीक़ा ही सबसे अच्छा होता है."

"उन्होंने कहा कि नाथूराम को फ़ौजी ढंग का स्लेटी सूट पहना दिया जाए जिसका उन दिनों बहुत चलन था. वो लोग बाज़ार गए और नाथूराम के लिए वो कपड़ा ख़रीद लाए. नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्तौल निकाली और उसमें सात गोलियाँ भरीं."

सरदार पटेल गांधी से मिलने पहुंचे
उधर डरबन के महात्मा गांधी के पुराने साथी रुस्तम सोराबजी सपरिवार उनसे मिलने आए थे. उसके बाद वो दिल्ली के मुस्लिम नेताओं मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान और अहमद सईद से मिले. उन्हें उन्होंने आश्वस्त किया कि उन लोगों की सहमति के बिना वो वर्धा नहीं जाएंगे.

दोपहर बाद गांधी से मिलने कुछ शरणार्थी, कांग्रेस नेता और श्रीलंका के एक राजनयिक अपनी बेटी के साथ आए. उनसे मिलने वालों में इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी भी थे.

गांधी से मिलने आने वालों में सबसे ख़ास शख्स थे सरदार पटेल जो साढ़े चार बजे वहां पहुंचे.

दूसरी तरफ़ समय काटने के लिए गोडसे और उनके साथी प्रतीक्षा कक्ष में चले गए.
डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस लिखते हैं, "नाथूराम ने कहा, मेरा जी मूँगफली खाने का कर रहा हैं. आप्टे मूँगफली ख़रीदने चले गए. थोड़ी देर बाद वापस आकर उन्होंने कहा कि मूँगफली तो पूरी दिल्ली में कहीं नहीं मिल रही है, क्या काजू या बादाम से काम चल जाएगा?"

"इस पर नाथूराम ने कहा- मुझे सिर्फ़ मूँगफली चाहिए. आप्टे एक बार फिर मूँगफली की खोज में बाहर चले गए. थोड़ी देर बाद वो एक बड़े से थैले में मूँगफली लेकर आए. नाथूराम बड़े चाव से जल्दी-जल्दी मूँगफली खाने लगे."

इतने में चलने का समय हो गया.

बिरला हाउस जाने से पहले सभी बिरला मंदिर गए
तय हुआ कि गोडसे और उनके साथी पहले बिरला मंदिर जाएंगे. करकरे और आप्टे वहां भगवान के दर्शन और प्रार्थना करना चाहते थे. गोडसे को इस तरह की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

मनोहर मुलगाँवकर अपनी क़िताब 'द मैन व्हू किल्ड गाँधी' में लिखते हैं, "करकरे जो भी शब्द कहने की कोशिश करते उनकी आवाज़ कांपने लगती. आप्टे उन्हें घूरकर संयत रहने की सलाह देते. गोडसे मंदिर के पीछे वाले बाग में जाकर आप्टे और करकरे की राह देखने लगे. ये दोनों जूते उतार कर नंगे पांव मंदिर के अंदर गए और वहां उन्होंने मंदिर में लगा पीतल का घंटा बजाया."

"जब ये लोग बाहर आए तो नाथूराम गोडसे शिवाजी की मूर्ति के पास खड़े थे. उन्होंने इन दोनों से पूछा कि क्या वो दर्शन कर आए? उन्होंने कहा-हाँ. इस पर नाथूराम बोले- मैंने भी दर्शन कर लिए."

बिरला हाउस में गोडसे की तलाशी नहीं हुई
वहां से नाथूराम गोडसे ने बिरला हाउस के लिए एक तांगा किया. नाथूराम के जाने के पांच मिनट बाद आप्टे और करकरे भी एक अलग तांगा कर बिरला हाउस पहुंच गए.

बाद में करकरे ने डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस को बताया, "हमने राहत भरी सांस ली जब बिरला हाउस के फाटक पर हमें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा."

उन्होंने बताया, "वहां पहले से अधिक तादाद में संतरी ज़रूर तैनात थे लेकिन कोई अंदर जाने वालों की तलाशी नहीं ले रहा था. हम टहलते हुए जब बगीचे में पहुंचे तो हमने देखा कि नाथूराम भीड़ में लोगों के बीच घुलमिल कर खड़े थे. हम भी उनके दोनों ओर जा कर खड़े हो गए. न उन्होंने हमारी तरफ़ देखा न हमने उनकी तरफ़."

गोडसे ने नज़दीक से गांधी पर तीन फ़ायर किए
उधर गांधी और पटेल के बीच पटेल और नेहरू के बीच के बढ़ते मतभेदों पर चर्चा हो रही थी. ये चर्चा इतनी गहरी और गंभीर थी कि गांधी को अपनी प्रार्थना सभा में जाने के लिए देर हो गई.
इस बातचीत के दौरान जैसा कि उनकी आदत थी, गांधी लगातार सूत कातते रहे. 5 बजकर 15 मिनट पर वो बिरला हाउस से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे.
उन्होंने अपने हाथ अपनी भतीजियों आभा और मनु के कंधों पर टिका रखे थे. चूंकि उन्हें देर हो गई थी, इसलिए उन्होंने प्रार्थना स्थल जाने के लिए शॉर्टकट लिया.
राम चंद्र गुहा अपनी किताब 'गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड' में लिखते हैं, "गांधी प्रार्थनास्थल के लिए बने चबूतरे की सीढ़ियों के पास पहुंचे ही थे कि, ख़ाकी कपड़े पहने हुए नाथूराम गोडसे उनकी तरफ़ बढ़े. उनके हावभाव से लग रहा था जैसे वो गांधी के पैर छूना चाह रहे हों."
वो लिखते हैं, "आभा ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने आभा को धक्का दे दिया और उनके हाथ से गांधी की नोटबुक, थूकदान और तस्बीह छिटक कर ज़मीन पर आ गिरे. तभी गोडसे ने अपनी पिस्तौल निकाल कर गांधी पर पॉइंट ब्लैंक रेंज से लगातार तीन फ़ायर किए. एक गोली गांधी के सीने में और दो गोली उनके पेट में लगी."
"गांधी ज़मीन पर गिरे और उनके मुंह से निकला 'हे राम.' ख़ून से भीगी उनकी धोती में मनु को गांधी की इंगरसोल घड़ी दिखाई दी. उस समय उस घड़ी में 5 बज कर 17 मिनट हुए थे. गांधी के गिरते ही सुशीला नैयर की एक सहयोगी डॉक्टर ने गांधी का सिर अपनी गोद में रख लिया."

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