पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को ग्लेशियर कहा जाता है। यह अपने भार के कारण ऊपर से नीचे की ओर प्रवाह करती है। भारत में पानी के बड़े स्रोतों के रूप में ग्लेशियर मौजूद हैं। क्लाइमेट चेंज के कारण पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। ऐसे में ग्लेशियर के पिघलने से कई जगह ग्लेशियर की झीलें बनी हैं। इनमें बहुत सी झीलें नदियों के किनारों पर स्थित हैं।
हिमालय के अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के हिमखंड पिघलकर नीचे की ओर बहते हैं। उनके साथ चट्टानें भी ग्लेशियर झीलों में इकट्ठा हो जाती हैं। ग्लेशियर झीलों में जब पानी का दबाव बढ़ जाता है तो यह उसे सहन नहीं कर पाती और फट जाती हैं। ग्लेशियर झीलों में जब पानी का दबाव बढ़ जाता है तो यह उसे सहन नहीं कर पाती और फट जाती हैं। ऐसे में जलप्रलय होता है, जिसकी जद में आने वाली हर चीज तबाह हो जाती है। अगर नदी पर कोई बांध या बिजली परियोजना है तो नुकसान और ज्यादा बढ़ जाता है।
वैज्ञानिक अध्ययनों से ऐसे हालात का पता लगाया जा सकता है, लेकिन लगातार बारिश या बादल का फटना जैसे कई प्राकृतिक कारण हैं, जिसके कारण अचानक आई आपदा में संभलने का मौका नहीं मिलता। उत्तराखंड के चमोली जिले के रैनी में आज सुबह ग्लेशियर फटने से ऋषि गंगा और तपोवन हाईड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं। धौली नदी में बाढ़ आने से हरिद्वार तक खतरा बढ़ गया है। अलकनंदा भी उफान पर है। त्रासदी को देख यूपी तक अलर्ट जारी कर दिया गया है।
बादल फटने से भी होती है जलप्रलय
बादल फटने से भी जलप्रलय की कई घटनाएंं भारत में हो चुकी हैं। बादल फटने की सबसे ज्यादा घटनाएं हिमाचल प्रदेश में हुई हैं। जब भी कोई बादल फटता है तो लाखों लीटर पानी एकसाथ गिरता है, जिससे उस क्षेत्र में बाढ़ आ जाती हैै। एक रिपोर्ट के मुताबिक बादल फटने से उस क्षेत्र में 75 एमएम से लेकर 100 एमएम प्रतिघंटे की दर से बारिश होती है। भारत में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठे मानसून के बादल जब उत्तर की ओर बढ़ते हैं, तो हिमालय उनके लिए अवरोधक का काम करता है। हिमालय से टकराने के बाद बादल फट जाते हैं। कई बार गर्म हवाओं से टकराव होने के कारण भी बादल फटने की घटनाएं सामने आई हैं। बादल फटने से भी बड़े पैमाने पर तबाही होती है। 2013 में केदारनाथ त्रासदी का कारण भी बादल फटना था। चिंताजनक पहलु यह है कि ग्लेशियर झीलों की स्थिति देख पता लगाया जा सकता है कि इसके टूटने पर कितना पानी नदियों में आएगा और कहां तक कितने क्षेत्र और आबादी को प्रभावित करेगा, लेकिन बादल को फटने से रोकने की कोई तकनीक नहीं है। ऐसी आपदाओं से बचने के लिए बाढ़ प्रबंधन ही एकमात्र उपाय है।